ॐ ह्ल्रीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्ल्रीं ॐ स्वाहा ।
“क्रम दीक्षा के अनुसार एकाक्षरी, चतुरक्षर, अष्टाक्षर मंत्र जप के बाद पश्चात् ही मूल मंत्र का जप करें, सीधे मूल मंत्र का जप न करें, क्यों कि बालू पर उठाई गई दीवार अधिक दिन टिक नहीं पाएगी, अतः नींव मजबूत करनी ही पड़ेगी।”
साधना अनुशासन इनकी साधना में अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि ये दुधारी तलवार है, अतः थोड़ी भी चूक का परिणाम भुगतना ही पड़ता है।
एक दृष्टांत: हम और एक पंडित जी ने बगला जप प्रारम्भ किया। तीसरे दिन मेरे दवाखाने में एक अत्यन्त सुन्दर स्त्री आई, उसके बाएं स्तन में गिल्टी थी। पहले तो मैं टाल रहा था, परन्तु उसके बार-बार आग्रह पर मैंने चेक किया। मेरे हाथ दाएं स्तन की ओर भी गए जो चिकित्सकीय रूप से उचित था परन्तु मन के भाव सही नहीं थे। उसी रात मेरा एक्सीडेंट हुआ, पर चोट नहीं लगी। पंडित जी को बताने गया तो पता चला उनके दोनों पैरों की हड्डियाँ टूटी हैं। उन्होंने भी अनुशासन तोड़ा था।
इसलिए निष्कर्ष: माँ बगलामुखी की साधना में अनुशासन अति आवश्यक है।
मूल मंत्र की महिमा: यह मंत्र सिद्ध हो जाने पर साधक में अपार शक्ति उत्पन्न होती है। ब्रह्मचर्य पूर्वक इसका अभ्यास करते-करते साधक अनुभव करता है कि कोई शक्ति उसके साथ है।
मूल मंत्र का चमत्कारिक प्रयोग:
- आग से जलने पर: “मूल मंत्र पढ़कर हथेली पर फूंकें और जले भाग पर फेरें – जलन तुरन्त समाप्त।”
- बर्र के डंक पर: “फूंका और फेर दिया – तीव्र जलन उसी क्षण समाप्त।”
- बिच्छू के डंक पर: “छटपटाती बालिका को जब फूंका और हाथ फेरा – दर्द तुरन्त चला गया।”
यह मंत्र अत्यधिक गोपनीय है। एक लाख जप आवश्यक है, पर 4 गुना जप करने से मंत्र शीघ्र फलीभूत होता है।
पूजा विधि: पीले वस्त्र, पीले पुष्प, हल्दी की माला, पीतल का यंत्र, सरसों के तेल का दीपक आदि से माँ का पूजन करें।
संकल्प: ॐ तत्सद्य परमात्मन् आज्ञया प्रवर्तमानस्य 2070 संवत्सरस्य श्री श्वेत वाराह कल्पे जम्बूदीपे भरत खंडे उत्तर प्रदेशे, लखनऊ नगरे निवासे, … मासे पक्षे तिथे गुरु वासरे, गोत्रोत्पन्नः (अपना नाम) अहं भगवत्याः पीताम्बरायाः प्रसाद सिद्धि द्वारा मम सर्वाभिष्ट सिद्ध्यर्थं च भगवती पीताम्बरायाः प्रसन्नार्थं एक लक्ष मूल-मंत्र जपे अहं कुर्वे।
ध्यान: सौवर्णासनस्थिता त्रिनयना पीतांशुकोल्लासिनी । हेमाभांगरूचिः शशांक मुकुटा सच्चम्पकसगयुता ॥ मुद्गर-पाश-बद्ध रसनां संविभ्रती भूषणैः । व्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां संस्तम्भिनी चिन्तये ॥
विनियोग: ॐ अस्य श्री बगलामुखी महाविद्या मन्त्रस्य नारद ऋषिः, त्रिष्टुप् छन्दः, बगलामुखी महाविद्या देवता, ह्लीं बीजं, स्वाहा शक्ति, ॐ कीलकं, मम अभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः।
ऋष्यादि न्यास: ॐ नारद ऋषये नमः शिरसि ॐ त्रिष्टुप छन्दसे नमः मुखे ॐ बगलामुखी महाविद्यायै देवतायै नमः हृदि ॐ ह्लीं बीजाय नमः गुहो ॐ स्वाहा शक्तये नमः पादयोः ॐ ॐ कीलकाय नमः नाभौ
कर न्यास: ॐ ह्लीं अनामिकाभ्याम नमः ॐ बगलामुखी तर्जनीभ्याम नमः ॐ सर्वदुष्टानां मध्यमाभ्याम नमः ॐ वाचं मुखं पदं स्तम्भय अनामिकाभ्याम नमः ॐ बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा करतलकरपृष्ठाभ्याम नमः
हृदयादि न्यास: ॐ ह्लीं हृदयाय नमः ॐ बगलामुखी शिरसे स्वाहा ॐ सर्वदुष्टानां शिखायै वषट् ॐ वाचं मुखं पदं स्तम्भय कवचाय हुम् ॐ जिह्वां कीलय नेत्रत्रयाय वौषट् ॐ बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा अस्त्राय फट्
जप पूर्व क्रियाएं:
- मुखशोधन: ऐ ह्लीं ऐ – 10 बार
- चैतन्य मंत्र: ई मूलं ई – 108 बार
- कुल्लक: ॐ हुं क्षौं – सिर पर 10 बार
- सेतु: ह्लीं स्वाहा – कंठ पर 10 बार
- महासेतु: स्त्रीं – हृदय पर 10 बार
- दीपन: ई – मूल मंत्र 7 बार
कवच: ॐ ह्लीं हृदयं पातु पादौ श्री बगलामुखी ललाटं सततं पातु दुष्टग्रह निवारिणी रशनां पातु कौमारी भैरवी चक्षुषोर्म्मय कटौ पृष्ठे महेशानी कर्णौ शंकर भामिनी वर्जितानि तु स्थानानि यानि च कवचेन हि तानि सर्वाणि मे देवी सततं पातु स्तम्भिनी ॥
स्तोत्र: बगला सिद्धविद्या च दुष्टनिग्रहकारिणी स्तम्भिन्या कर्षिणी चैव तथोच्चाटनकारिणी भैरवी भीमनयना महेशगृहिणी शुभा दशनामात्मकं स्तोत्रं पठेद्वा पाठयेद्यदि स भवेत् मन्त्रसिद्धश्च देवीपुत्र इव क्षितौ ॥
निष्कर्ष: यह सम्पूर्ण साधना माँ बगलामुखी की कृपा से पूर्ण होती है। अनुशासन, श्रद्धा, ब्रह्मचर्य और दृढ़ निष्ठा के साथ किया गया जप साधक को अपार सिद्धियों की ओर ले जाता है।
||जय माँ बगलामुखी||