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माँ बगलामुखी

अनुभूति तंत्र

गुरुजी श्री टी.डी. सिंह जी के आशीर्वाद से

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अब तक

 साधकों ने माँ बगलामुखी से जुड़ने का संकल्प लिया है।

माँ बगलामुखी कौन हैं?

माँ की शक्ति क्या है?

माँ बगलामुखी तंत्रशास्त्र की एक अत्यंत शक्तिशाली और जाग्रत महाविद्या हैं, जिन्हें स्तम्भन शक्ति की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है।उनकी उपासना साधक को केवल शत्रुनाश या वाणी नियंत्रण ही नहीं, बल्कि गहन मानसिक स्थिरता और आत्मिक स्पष्टता भी प्रदान करती है।

🙏 अधिष्ठान: आठ प्रमुख तांत्रिक क्रियाओं की स्वामिनी

माँ बगलामुखी निम्नलिखित प्रमुख तांत्रिक शक्तियों की अधिपति हैं:
🔹 वशीकरण (विचारों पर प्रभाव)
🔹 स्तम्भन (गति और वाणी का नियंत्रण)
🔹 मरण (शत्रु-नाश)
🔹 उच्चाटन (हानिकारक तत्वों की दूर हटाना)
🔹 मोहन (मोहक आकर्षण)
🔹 विद्वेषण (दु:शक्तियों में मतभेद उत्पन्न करना)
🔹 आकर्षण (शक्ति को केंद्र में लाना)
🔹 संमोहन (चेतना पर प्रभाव)
इन शक्तियों का प्रयोग केवल गुरु निर्देशित मार्गदर्शन में, धर्म और आत्म-संरक्षण हेतु किया जाता है।

🔹 माँ ही ग्रहों को गति और मति देती हैं
🔹 यही शक्ति सृष्टि का संचालन और संतुलन बनाए रखती है
🔹 उनका पीला स्वरूप — “पीताम्बरा” — चेतना, शांति और आंतरिक संतुलन का प्रतीक है
🔹 एक हाथ से वे शत्रु की जिव्हा को रोकती हैं, दूसरे से मुद्गर द्वारा नकारात्मकता का नाश करती हैं

⚠️ सावधान!

“बगलामुखी माता की साधना कोई सामान्य साधना नहीं है। इसके मंत्रों को बिना गुरु की आज्ञा के जपने या साधना करने का प्रयास कभी न करें। सबसे पहले योग्य गुरु से विधिवत गुरुदीक्षा लेकर ही पाठ आरंभ करें, अन्यथा अनिष्ट का भय रहता है।”

🔹 आपके हथियार हैं: गुरु, मंत्र, माला और आसन
🔹
केवल गुरु द्वारा दिया गया मंत्र ही जपें
⚠️  साधना में नियम, शुद्धता, ब्रह्मचर्य और समर्पण अनिवार्य हैं

🔹 माँ बगलामुखी अष्टमी महाविद्या हैं, जिन्हें पीताम्बरा भी कहा जाता है
🔹 वे अग्नि और ब्रह्मास्त्र रूपिणी भी हैं — शत्रु नाश, बुद्धि नियंत्रण और आत्मबल देने वाली देवी
🔹 संहार व स्थिरता का प्रतीक — प्रकृति की ऊर्जा जो हमारी रचना और संरचना को बनाये रखती है

🔹 द्विभुजा (2 भुजाएँ) — आम रूप, एक हाथ में गदा, दूसरे में शत्रु की जीभ पकड़े हुए; सौम्य रूप जिसे स्तम्भन शक्ति कहा जाता है
🔹 चतुर्भुजा (4 भुजाएँ) — दोनों हाथों में अतिरिक्त यंत्र, पुस्तक और जाल; बुद्धि-संचालन व नियंत्रण की गहरी शक्ति दिखाती है

🙏 माँ बगलामुखी ध्यान से मिलने वाले 5 दिव्य लाभ

🔹 भूत-प्रेत, तंत्र-बाधा और अभिचारिक शक्तियों का निवारण:
माँ का ध्यान साधक के चारों ओर एक अदृश्य तांत्रिक ऊर्जा-कवच का निर्माण करता है। इससे भूत-प्रेत, डाकिनी-शाकिनी, तांत्रिक बाधाएँ, नजर दोष और काला जादू निष्क्रिय हो जाते हैं।
🔹 कोर्ट केस, मानहानि और शत्रु-विजय में अदृश्य सहायता:
माँ बगलामुखी राज-सत्ता की अधिष्ठात्री देवी हैं। जो भक्त सच्चे भाव से उनका ध्यान करता है, उसे न्यायालयीन मामलों, राजनीतिक उलझनों और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है — माँ स्वयं उसकी वाणी और निर्णय-शक्ति में स्तम्भन करती हैं
🔹 भोग और योग का संतुलन:
माँ का ध्यान साधक को जीवन से विमुख नहीं करता — वह साधक को श्रेष्ठ कर्मफल (भोग) और आत्मोन्नति (योग) दोनों प्रदान करता है।
माँ का मार्ग गृहस्थ और ब्रह्मचारी दोनों के लिए सहज और सिद्धिकारक है।
🔹 भाव से माँ प्राप्त होती हैं, न कि केवल मंत्र से:
यदि साधक का भाव प्रबल हो, तो बिना किसी विशेष सिद्धि के भी माँ की उपस्थिति संभव है।
मंत्र या दीक्षा से पहले, भाव की तीव्रता माँ को आकर्षित करती है।
भाव ही वह पुल है, जिससे साधक माँ की चेतना से जुड़ता है।
🔹 ध्यान से बढ़ती है स्मरण शक्ति, आत्मबल और निर्णय क्षमता:
माँ बगलामुखी का नियमित ध्यान मस्तिष्क की चंचलता को शान्त करता है और बुद्धि को तेज करता है।
विद्यार्थी हों या अधिकारी — ध्यान से स्मृति, आत्मविश्वास और निर्णय-शक्ति तीव्र होती है, जिससे जीवन में सफलता का मार्ग खुलता है।

साधना के वीडियो

नव साधक और अनुभवी साधक

अदीक्षित साधक

दीक्षित साधक

गुरुजी श्री टी.डी. सिंह जी

उन्होंने साधना कैसे शुरू की?

गुरुजी का अंतर्मन प्रारंभ से ही लौकिक सीमाओं से परे, किसी गहरे सत्य की खोज में था। अनेक संतों और मार्गदर्शकों की संगति के बाद भी उनके भीतर की जिज्ञासा अचल बनी रही — एक ऐसा मौन जो उत्तर मांग रहा था। यह तपस्वी आकांक्षा उन्हें अंततः कामाख्या धाम तक ले गई, जहाँ उन्हें अपने पूर्वजन्म की स्मृति-सूत्र झलकने लगे।

यहीं पर एक उच्चकोटि के तांत्रिक संत के सान्निध्य में उन्हें वह दीक्षा मिली, जिसने साधना के सूक्ष्म द्वार उनके लिए खोल दिए। यह केवल विधि नहीं, बल्कि संस्कारांतरण था — जो केवल गुरु की कृपा से संभव हुआ। गुरुजी ने साधना को केवल अभ्यास नहीं, आत्म-अर्पण का मार्ग माना और अनुशासन, मौन, और श्रद्धा के साथ साधना में प्रविष्ट हुए।

आज भी उनका जीवन साधना में प्रगति और समाज के लिए समर्पण — इन दोनों के बीच एक जीवंत पुल है, जो माँ बगलामुखी की कृपा का स्थायी प्रवाह बन चुका है।

गुरुजी का संदेश

हम माँ बगलामुखी की सेना खड़ी करने आए हैं —
ऐसे साधक नहीं, ऐसे योद्धा तैयार करने आए हैं
जो स्वयं जागें और संसार में माँ की शक्ति को उतारें।
हमारा कार्य केवल हवन या अनुष्ठान कराना नहीं है।
हम चाहते हैं कि हर साधक पहले माँ से जुड़े, साधना करे,
और फिर माँ की कृपा को जनकल्याण में लगाए।

गुरुजी कहते हैं:
माँ की साधना केवल संकट निवारण नहीं —
यह आत्म-जागरण और भीतर स्थायी शक्ति की यात्रा है।
यह साधना साधक को भय से नहीं,
भीतर की मौन और अडोल चेतना से जोड़ती है।
भगवती स्वयं चाहती हैं कि उनका तेज, तंत्र और नाम
इस युग में पवित्र, निष्ठावान और योग्य साधकों के माध्यम से फैले —
जो केवल भक्त न हों,
बल्कि माँ के धरती पर जाग्रत योद्धा हों।

गुरुजी को सद्गुरु की प्राप्ति कैसे हुई?

गुरुजी की साधना यात्रा एक सतत आंतरिक पुकार थी — एक ऐसी चेतना की खोज, जो केवल ज्ञान नहीं, अंतःशांति भी दे। उन्होंने देश के कई तीर्थों, आश्रमों और गुरुओं का मार्ग देखा, परन्तु अंतर की अधूरी अनुभूति बनी रही। यह खोज उन्हें कामाख्या धाम तक ले गई — वही स्थान जहाँ उनके पूर्वजन्म के अनुभव मानो पुनः जागृत हो उठे।

यहीं उनका साक्षात्कार हुआ संत बाबा जी से — एक ऐसे वाममार्गीय तांत्रिक से, जिनकी उपस्थिति ही मौन साधना थी। यह मिलन तात्कालिक नहीं था; वर्षों तक गुरुजी की निष्ठा, पात्रता और मौन को परखा गया। और अंततः एक दिन, माँ पीताम्बरा की तांत्रिक दीक्षा उन्हें प्रदान की गई — न केवल मंत्रों में, बल्कि चेतना की गहराई में।

बाद में श्री योगेश्वरानंद जी जैसे आंतरिक साधना के मर्मज्ञ आचार्य से उन्हें और भी गूढ़ तांत्रिक अनुभूतियाँ मिलीं। यही गुरु-परंपरा उनकी साधना का मूल स्तंभ बनी — जहाँ साधक और शक्ति के बीच का सेतु गुरु बन गया।

आप क्या समझते हैं?

साधना केवल कोई प्रश्न पूछने या उत्तर पाने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि स्वयं को खोकर सत्य में विलीन होने की साधना है। माँ बगलामुखी की उपासना साधक को भय, भ्रम और बाह्य द्वंद्व से मुक्त कर भीतर स्थिर करती है — वहाँ जहाँ मौन में माँ का उत्तर स्वतः प्रकट होता है।
जो साधक परिणाम की अपेक्षा छोड़कर अभ्यास को ही पूजा बना लेता है, वही भीतर से परिवर्तित होता है। साधना के प्रतिफल तात्कालिक नहीं होते, परंतु समय के साथ साधक की दृष्टि, चेतना और जीवन स्वयं ही उत्तर बन जाते हैं। यह मार्ग समस्या हल करने से कहीं आगे — आत्मा को सजग और जीवन को संतुलित करने की ओर ले जाता है।

दीक्षा क्या है?

दीक्षा क्यों आवश्यक है?

दीक्षा केवल एक धार्मिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि चेतना का जीवंत संचार है — जहाँ गुरु अपने तप, अनुभव और शक्ति का अंश साधक में प्रतिष्ठित करता है। भगवान शिव ने सभी मंत्रों को कीलित किया है, और उनका उत्कीelan (सक्रिय होना) तभी होता है जब गुरु द्वारा दीक्षा दी जाती है। बिना दीक्षा, मंत्र केवल ध्वनि रहता है — शक्ति नहीं। दीक्षा से न केवल साधना की प्रक्रिया स्पष्ट होती है, बल्कि यह भी सिद्ध होता है कि आप किस परंपरा और किस गुरु के शिष्य हैं, जिससे देवताएँ आपको पहचानने लगती हैं। गुरु की शक्ति साधक की शक्ति से जुड़ती है, और वही गुरु साधक की रक्षा करता है, उसे दिशा देता है, और साधना के हर चरण में मार्गदर्शन करता है। इसलिए दीक्षा साधना की पहली और सबसे अनिवार्य सीढ़ी है।

दीक्षा कौन दे सकता है?

दीक्षा वही दे सकता है जो स्वयं दीक्षित हो — अनुभव से, अनुशासन से और माँ की कृपा से पूर्ण हो। ऐसा गुरु साधक की चेतना, संस्कार और दोषों को सूक्ष्म रूप से जानता है। वह दीक्षा केवल विधि नहीं देता, बल्कि शक्ति के प्रवाह का उत्तराधिकारी बनाता है।
गुरु-शिष्य परंपरा में दीक्षा एक गोपनीय ऊर्जा-संक्रमण है, जो केवल पात्र शिष्य को ही दिया जाता है। यह कोई सार्वजनिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि साधक के भीतर तांत्रिक द्वार खोलने की एक मौन प्रक्रिया है — जहाँ से साधना का वास्तविक आरंभ होता है।

दीक्षा मिलने के बाद साधक को क्या करना चाहिए?

दीक्षा केवल प्रारंभ नहीं, उत्तरदायित्व का आरंभ है। अब साधक को गुरु द्वारा दिए गए नियमों को केवल पालन नहीं, आत्मनियम की तरह अपनाना होता है। संयम, श्रद्धा और अनुशासन अब साधना की आत्मा बन जाते हैं — जहाँ चूक केवल बाहरी नहीं, ऊर्जा के स्तर पर बाधा बनती है।
साधना में आने वाले अवरोध गुरु के संरक्षण में साधक को भीतर से मांजते हैं। इसलिए शंका नहीं, संवाद आवश्यक है। दीक्षा के बाद साधक का कर्तव्य है कि वह नियमबद्ध जप, विचारों की पवित्रता और जीवन की शुद्धता को अपने साधना-पथ की रीढ़ बनाए — वहीं से माँ की कृपा स्थायी रूप में उतरती है।

माँ का प्रतीक और स्वरूप

माँ बगलामुखी का पीत रूप केवल रंग नहीं, चेतना है — स्थिरता, स्तम्भन और शत्रुता पर नियंत्रण की सजीव मूर्ति। उनका शत्रु की जिव्हा को पकड़ना और मुद्गर धारण करना दर्शाता है कि वे नकारात्मक प्रवृत्तियों को वहीं रोक देती हैं जहाँ वे प्रारंभ होती हैं।

माँ का पीला ध्वज तांत्रिक स्तम्भन ऊर्जा का प्रतीक है — एक ऐसा संकेत, जो साधक को भीतर से स्थिर करता है और बाहर से रक्षा कवच निर्मित करता है। माँ के स्वरूप का दर्शन मात्र साधक के चित्त में श्रद्धा, आत्मबल और निर्भयता भर देता है। उनकी आभा केवल प्रकाश नहीं, एक अनुभव है — जो साधक को माँ की शक्ति से साक्षात्कार कराता है।

गैलरी

माँ पीताम्बरा के

चमत्कारी प्रभाव 

जब साधक पूर्ण श्रद्धा और अनुशासन से साधना करता है, तब माँ पीताम्बरा उसकी हर पुकार अवश्य सुनती हैं। कई साधकों ने तांत्रिक बाधाओं से मुक्ति, असाध्य रोगों का शमन, आर्थिक संकटों से उबार और जीवन में अद्भुत परिवर्तन प्रत्यक्ष अनुभव किए हैं। ये अनुभव माँ की कृपा और सजीव उपस्थिति के प्रमाण हैं।

लेख और अनुभव

माँ बगलामुखी: न्याय, स्तम्भन और रहस्य की तांत्रिक देवी

✨ भूमिका भारतीय तांत्रिक परंपरा में दस महाविद्याओं का विशेष स्थान है। इन्हीं में से एक हैं माँ बगलामुखी – जिन्हें स्तम्भन, वाक्-विजय, शत्रु नाश, निर्णय बल और मौन की शक्ति की देवी माना जाता है।इन्हें पीताम्बरा, ब्रह्मास्त्र-विद्या की अधिष्ठात्री, और गूढ़ तांत्रिक सत्ता की स्वामिनी के रूप में पूजा जाता है। ✨ माँ बगलामुखी का उद्भव एवं स्वरूप ईश्वर की इच्छा से जब त्रिलोक में कलह और असंतुलन फैल गया, तब भगवान विष्णु ने पीले कमल पर तप किया। तपस्या से उत्पन्न ऊर्जा से प्रकट हुईं माँ बगलामुखी – जिनकी कांति स्वयं पीतवर्ण की थी।इसलिए उन्हें पीताम्बरा कहा गया। उनका

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माँ की शक्ति का परिचय

माँ बगलामुखी केवल स्तम्भन की देवी नहीं, बल्कि साधक के भीतर व्याप्त असंतुलन को संतुलन में परिवर्तित करने वाली चेतना हैं। उनका पीत स्वरूप ऊर्जा को रोककर उसे केंद्रित करता है — यही केंद्रबिंदु साधक की साधना का आरंभ बनता है।

माँ की शक्ति से साधक के भीतर साहस, स्पष्टता और आत्मबल जागृत होता है। यह शक्ति न केवल बाह्य शत्रुओं को निरस्त करती है, बल्कि भीतर के भय, भ्रम और दुर्बल विचारों का शमन कर आत्मविश्वास को स्थापित करती है। माँ की साधना साधक को भीतर से ऐसा बनाती है कि विघ्न स्वतः ही मार्ग छोड़ देते हैं।

माँ बगलामुखी की पूजा कोई बाह्य कर्मकांड नहीं, बल्कि साधक के भीतर स्थित चेतना केंद्र को सक्रिय करने की प्रक्रिया है। पूजा में पीले वस्त्र, पीतल का कलश, हल्दी, चना और सरसों का तेल केवल प्रतीक नहीं — ऊर्जा के वाहक हैं, जो माँ की स्तम्भन शक्ति को आकर्षित करते हैं।

पूजा का स्थान जितना बाहर स्वच्छ हो, उतना ही मन भीतर निर्मल होना चाहिए। ध्यान, आरती और स्तुति करते समय साधक का भाव केवल विनती नहीं, समर्पण होना चाहिए। गुरु के निर्देशन में किए गए विशेष अनुष्ठान साधना को दिशा देते हैं और ऊर्जा को नियंत्रित रूप से साधक के भीतर प्रवाहित करते हैं।

दीक्षा साधना का प्रवेशद्वार नहीं, उसकी आत्मा है। बिना दीक्षा साधक बाहरी विधियों में उलझा रहता है, जबकि दीक्षित साधक भीतर के द्वार खोलने लगता है। गुरु दीक्षा के माध्यम से केवल मंत्र नहीं देते, वे साधक को ऊर्जा, अनुशासन और चेतना की संरचना प्रदान करते हैं।
यह प्रक्रिया साधक के भीतर छिपी उस दिव्य शक्ति को जाग्रत करती है, जो साधना के प्रभाव को दिशाबद्ध और सुरक्षित बनाती है। दीक्षा से साधना केवल प्रयास नहीं रहती — वह संरक्षित साधना पथ बन जाती है, जहाँ गुरु का तेज और माँ की कृपा निरंतर सक्रिय रहते हैं।

साधना केवल अभ्यास नहीं, एक जीवनशैली है — जहाँ हर क्रिया साधक की ऊर्जा पर प्रभाव डालती है। नियमितता, संयम और मन, वचन व कर्म की पवित्रता साधना को भीतर तक पोषित करती है। आहार-विहार में शुद्धता, विचारों में सजगता और व्यवहार में मौन आवश्यक है।

गुरु के निर्देश साधक के लिए केवल सलाह नहीं, ऊर्जा संतुलन की रेखा होते हैं। सिद्धि की अधीरता साधना की गहराई को छिन्न-भिन्न कर देती है। अतः शांति से, धैर्यपूर्वक और पूर्ण समर्पण के साथ साधना करना ही तांत्रिक पथ की असली रीति है।

माँ बगलामुखी का ध्यान केवल चित्त को स्थिर नहीं करता, वह साधक के भीतर की विक्षिप्त ऊर्जा को एक केंद्र पर लाकर चेतना का जागरण करता है। ध्यान से साधक का आभामंडल (औरा) दृढ़ और तेजस्वी होता है, जिससे बाहरी भय, भ्रम और बाधाएँ स्वतः निष्क्रिय हो जाती हैं।

इस स्थिति में साधक को मानसिक संतुलन, आत्मविश्वास और आंतरिक स्पष्टता प्राप्त होती है। ध्यान से माँ की शक्ति साधक के भीतर स्थायी रूप से प्रवाहित होती है, जिससे उच्च अनुभूतियाँ जन्म लेती हैं और साधना केवल अभ्यास नहीं — एक जीवंत अनुभूति बन जाती है।

गुरु का महत्व जीवन में बहुत अधिक है। गुरु अज्ञानता को दूर करके ज्ञान की ओर ले जाने वाला, सही मार्ग दिखाने वाला और जीवन के उद्देश्य को समझने में मदद करने वाला होता है। गुरु, शिक्षा के साथ-साथ नैतिक और मानसिक विकास में भी सहायक होते हैं।

भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य परंपरा का बहुत महत्व है। गुरु, अपने शिष्यों को न केवल ज्ञान देते हैं, बल्कि उन्हें जीवन के हर पहलू में मार्गदर्शन भी करते हैं।

तंत्र जगत में, गुरु दीक्षा का बहुत महत्व है। यह शिष्य के आध्यात्मिक विकास और साधना में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। गुरु दीक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक गुरु अपने शिष्य को मंत्र, विधि या ज्ञान प्रदान करता है, जिससे शिष्य को आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करने में मदद मिलती है। यह शिष्य के लिए आध्यात्मिक मार्गदर्शक और प्रेरणा का स्रोत होती है।

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साधना सामग्री

गुरुजी के ग्रंथ. pdf

1 pages

मैं दीक्षित साधक हूँ

आप पर माँ बगलामुखी की अपार कृपा है — क्योंकि आपको एक सच्चे गुरु मिल चुके हैं।

यदि आप गुरुजी श्री टी.डी. सिंह जी के दीक्षित शिष्य हैं, तो आपको बहुत-बहुत बधाई।

और यदि आप किसी अन्य गुरु के शिष्य हैं, तो भी आपका इस पथ में हार्दिक स्वागत है।

हम आपको एक सुगम और प्रभावशाली साधना मार्ग प्रदान करेंगे — कृपया उसका

पालन करें, लेकिन अपने गुरु से अनुमति लेकर ही आगे बढ़ें।

गुरु की महिमा

“भग मरे तो गुरु बचे, गुरु मरे तो ठौर न पाय।
जैसे कूप बिन प्यासे, प्यासे मरे मराय॥”

गुरु ही जीवन के असली मार्गदर्शक हैं — उनके बिना साधना अधूरी है।

इस वेबसाइट पर आपको क्या मिलेगा?

यहाँ आपको मिलेगा:

 गोपनीय तांत्रिक ज्ञान, जो सामान्य पुस्तकों में नहीं होता
 मूल मंत्र, मंत्रमालाएं, और उनका सही प्रयोग
 आसन, मुद्रा, यंत्र संचालन और हवन विधि
 साधना की व्यावहारिक प्रक्रिया और सिद्धियों की तैयारी

आपको करना क्या है?

 अनुभव और लेख अनुभाग पढ़ें
 गैलरी में वीडियो देखें
 हमारा YouTube चैनल सब्सक्राइब करें
 वीडियो ज्ञान को समझें, अनुभव करें और प्रयोग करें
 गुरु भोज का पालन करें, जो साधना में अग्नि की तरह है

यदि माँ की कृपा और आपके भाग्य में लिखा होगा, तो दुर्लभ दिव्य ग्रंथ भी आपको प्राप्त हो सकता है —
जो आपकी साधना के लिए संभावनाओं के नए द्वार खोलेगा।

हमारा उद्देश्य क्या है?

हम आपके लिए जाप या हवन करने नहीं,
बल्कि आपको तीव्र साधक बनाने के लिए हैं।

 आप स्वयं अपनी समस्याएं सुलझाएं,
और फिर जनकल्याण का कार्य करें।

🙏 जय माँ पीताम्बरा 🙏

मैं दीक्षा लेना चाहता हूँ

आपको मेरा सच्चा प्रणाम, जो माँ बगलामुखी से जुड़ना चाहते हैं।

कृपया यह समझें कि साधक बनना आसान नहीं है,
और माँ बगलामुखी इतनी सस्ती नहीं हैं कि बिना समर्पण और पात्रता के मिल जाएं।

आपको परीक्षा से गुजरना होगा —
और यदि भगवती चाहें, तो आपको वह परीक्षा दी जाएगी।

अगर आप उसमें सफल हुए, तभी आपको दीक्षा का सौभाग्य प्राप्त होगा।

 हमारा उद्देश्य

हम जनकल्याण के कार्य में पहले से ही लगे हैं,
परंतु हम तीव्र साधक बनाना चाहते हैं — न कि अनुयायी एकत्र करना।

 साधक की पहली परीक्षा — धैर्य 

यदि भगवती चाहेंगी, तभी आपको हमारी ओर से उत्तर मिलेगा।
हम कोई फंडेड संस्था नहीं हैं —
लेकिन यह अभियान उन्हीं साधकों से चल रहा है जो अलग-अलग व्यस्तताओं में होते हुए भी
समर्पण से जुड़े हैं।

क्या करें?

नीचे दिए गए फ़ॉर्म को ध्यानपूर्वक भरें।
यदि माँ की कृपा हुई, तो आपको उत्तर अवश्य मिलेगा।

 🙏 जय माँ पीताम्बरा 🙏

मैं बिना दीक्षा पूजा करना चाहता हूँ

जय माँ पीताम्बरा!

अगर आप बिना दीक्षा पूजा करना चाहते हैं, तो सबसे पहले ये बात अच्छी तरह समझ लें —

❌ आप कोई तांत्रिक मंत्र नहीं जप सकते
❌ YouTube से देखकर मंत्र बोलना मना है
❌ किसी को सलाह देना मना है — वरना आपको हानि हो सकती है

माँ की योगिनियाँ आपके पीछे पड़ सकती हैं।
वे रक्तपान करने वाली शक्तियाँ हैं —
अगर मर्यादा टूटी तो ये शक्तियाँ साधक को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक स्तर पर कष्ट पहुँचा सकती हैं।

⚠️ क्या न करें (कठोर मनाही):

किसी भी प्रकार का मंत्र उच्चारण न करें

YouTube से कोई भी मंत्र देखकर ना दोहराएं

किसी और को पूजा का तरीका, उपाय या मंत्र मत बताएं

“मैं माँ को बुला रहा हूँ”, “मैं शक्ति को आमंत्रित करता हूँ” — इस प्रकार की शपथ या आह्वान ना लें

क्या कर सकते हैं?

🪔 घर में माँ का चित्र या मूर्ति रखें (हल्दी से सिद्ध या पीले वस्त्र में)
🕯️ शुद्ध घी या सरसों के तेल का दीपक रोज़ जलाएँ
🔥 भीमसेनी कपूर जलाकर माँ से मौन में अनुमति माँगें
🧎‍♂️ माँ से कहें:
“हे माँ, मुझे योग्य बनाओ, मैं प्रतीक्षा करूँगा जब तक आप चाहें।”

🙏 कुआ करें, एकांत में बैठकर नाम जप करें —
👉 “जय माँ पीताम्बरा”
👉 या “जय माँ बगलामुखी”

📖 आप बगलामुखी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं।
यह स्तोत्र रुद्रयामल और विष्णुयामल तंत्र में मान्य है और बिना दीक्षा भी इसका पाठ अनुमेय है।

ध्यान रखें 


❗ यह साधना मनोरंजन नहीं है।
❗ यह चेतन और जाग्रत शक्तियों का मार्ग है।
❗ यदि आपने मर्यादा तोड़ी, तो
माँ की योगिनियाँ आपके पीछे पड़ेंगी — और आपकी साधना की जगह पतन होगा।

संक्षेप में — भाव से जुड़ें, नियम से चलें, और धैर्य रखें।

जब माँ चाहेंगी, तब वह स्वयं रास्ता खोलेंगी।

🙏 जय माँ बगलामुखी
🙏 जय माँ पीताम्बरा

माँ के मंदिर हेतु पुण्य दान करें

गुरुजी का संदेश

“हमें सेवा करने वाला नहीं, साधना करने वाला साधक चाहिए।”
“हवन कोई और ना करे, साधक खुद करे – और जनकल्याण करे।”

QR कोड स्कैन करें और दान करें

🙏 धन्यवाद 🙏

आपका यह दान धर्म, भक्ति और सेवा के पवित्र कार्य में सहायक सिद्ध होगा। माँ बगलामुखी आपकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करें और आपको शक्ति, सफलता व सुरक्षा प्रदान करें।

🔱  जय माँ बगलामुखी  🔱