“|| आं ह्ल्रीं क्रों ग्लौं हुँ ऐं क्लीं श्रीं ह्रीं बगलामुखि आवेशय आवेशय आं ह्ल्रीं क्रों ब्रह्मास्त्ररुपिणि एहि एहि आं ह्ल्रीं क्रों मम हृदये आवाहय आवाहय सान्निध्यं कुरु कुरु आं ह्ल्रीं क्रों ममैव हृदये चिरं तिष्ठ तिष्ठ आं ह्ल्रीं क्रों हुं फट् स्वाहा ||”
यह मंत्र बड़ा ही विलक्षण है, इसके समरण मात्र से अभीष्ट से अभीष्ट कार्य संपंदित हो जाते है, उसके लिए आवयश्क है कि इस मंत्र का चालीस हजार जप कर हवन, तर्पण, मार्जिन कर मंत्र के माध्यम से हम लोग माँ की निकटता प्राप्त करने का
इसे जागृत कर लिया जाय इस प्रत्यन करते है “ममैव हृदये चिरं तिष्ठ तिष्ठ” लगातार प्रयास से क्रमशः माँ की ज्योति हमारे
हृदय में कुछ ना कुछ मात्रा में आ ही जाती है लेकर बहुत ही भयानक व कठोर दंड देती है।
साधक का अहित सोचने वालो को माँ स्वयं संज्ञान
यदि ऐसी घटना हृदय मंत्र के पश्चयात होने लगे
तो समझ लेना माँ की ज्योति आप के हृदय तक पहुंच गयी है।
संकल्प :- भगवती माँ पीताम्बरा की प्रसन्नता के लिए मैं बगला हृदय मंत्र का दस हजार मंत्रो का जप करने का संकल्प कर रहा है।
दस हजार जप के पश्चयात बीज मंत्र के सामग्री से दस माले का हवन बामाचारी पद्धित से कर शराब से तर्पण और मार्जिन ही करे।
चूँकि कलियुग मे मंत्र जप चार गुना करते है अतः चार बार इसी प्रकार १०-१० हजार के और अनुष्ठान करने है।
लाभ :-
> बंध्या स्त्री पुत्रवती हो जाती है।
> मुकदमे में विजय देता है।
> सभी मनोवांछित कार्य होते है।
दरिद्रता नष्ट हो जाती है, धन का आवागमन प्रारम्भ हो जाता है।
> सभी लोग सफलता देख कर हक्के बक्के रह जाते है।
> १०८ बार इसी मंत्र से जल अभ्मंत्रित कर रोगी को पिलाने से रोगी रोग मुक्त हो जाता है।
|| जय माँ बगलामुखी ||