SoftBrownModernRipInstagramPost12-ezgif.com-resize
Loading ...

Baglatd

Edit Content

गुरु जी के बारे में मैं

गुरुजी श्री टी.डी. सिंह जी

गुरुजी श्री टी.डी. सिंह जी का जीवन साधना, सेवा और समाज कल्याण के महान आदर्शों से भरा रहा है। उन्होंने 1997 में परमेश्वरी साधना के गूढ़ मार्ग पर पदार्पण किया और तब से माँ बगलामुखी की कृपा से अनगिनत साधकों को मार्गदर्शन दिया। उन्होंने साधना को केवल व्यक्तिगत मोक्ष का माध्यम नहीं माना, बल्कि जनकल्याण का एक प्रभावी साधन बनाया।

गुरुजी का जन्म उत्तर प्रदेश के एक अध्यात्मपरायण परिवार में हुआ था। उन्होंने गहन आध्यात्मिक अनुभवों के आधार पर तांत्रिक परंपरा को सहज और व्यवहारिक रूप में साधकों के लिए प्रस्तुत किया। वे न केवल साधना के सिद्ध पथिक रहे, बल्कि समाज में अध्यात्म के प्रचार-प्रसार हेतु भी सक्रिय रहे।

वर्षों की कठिन तपस्या और गुरु-परंपरा की गहराई से उन्होंने माँ बगलामुखी की साधना को जनसाधारण तक पहुँचाने का महान कार्य किया। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और सांस्कृतिक उत्थान में भी उल्लेखनीय योगदान दिया।

उन्होंने साधना कैसे शुरू की?

गुरुजी श्री टी.डी. सिंह जी का झुकाव प्रारंभ से ही अध्यात्म की ओर था। अनेक संतों और महापुरुषों के संपर्क में आने के बाद भी उनकी आंतरिक खोज शांत नहीं हुई। वर्षों तक यह जिज्ञासा उन्हें देश के विभिन्न तीर्थों और साधना स्थलों की ओर खींचती रही। उन्हें बार-बार एक ही दिव्य स्वप्न आता, जिसमें वे एक विशाल पत्थर के हॉल में साधकों को साधना करते देखते थे।

यह रहस्य तब स्पष्ट हुआ जब वे माँ कामाख्या धाम पहुंचे। वहाँ का दृश्य हूबहू उनके स्वप्न जैसा था। यहीं पर उन्हें अनुभवी तांत्रिक संत “संत बाबा” के संपर्क में आने का सौभाग्य मिला। पहले-पहल उन्हें साधना की दीक्षा नहीं दी गई — संत बाबा ने कहा, “माँ इतनी सस्ती नहीं हैं कि सबको मिल जाएं।” वर्षों की प्रतीक्षा और पात्रता सिद्धि के पश्चात, अंततः गुरुजी को माँ बगलामुखी की वाममार्गीय दीक्षा प्राप्त हुई।

इसके बाद उनका साधना-पथ तेज़ी से विकसित होता गया। माँ की कृपा और गुरु परंपरा के संरक्षण में उन्होंने जनकल्याण के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया।

उनका संदेश

गुरुजी श्री टी.डी. सिंह जी का संदेश साधकों के लिए एक प्रेरणास्त्रोत है। वे मानते हैं कि साधना केवल सिद्धि का माध्यम नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और लोककल्याण का पथ है। उन्होंने हमेशा यह सिखाया कि साधक को परिणाम की चिंता किए बिना पूरी श्रद्धा, अनुशासन और समर्पण से साधना करनी चाहिए।

गुरुजी ने यह भी स्पष्ट किया कि कठिन समय, भय या हानि की स्थिति में ही नहीं, बल्कि हर परिस्थिति में साधना को जीवन का हिस्सा बना लेना चाहिए। वे कहते थे — “माँ साधक की हर स्थिति में रक्षा करती हैं, बस साधक का मन और पथ स्थिर होना चाहिए।”

उनका यह संदेश आज भी हज़ारों साधकों को साधना में अडिग रहने की प्रेरणा देता है और माँ बगलामुखी की कृपा से जीवन में स्थिरता, साहस और विजय का अनुभव कराता है।

गुरुजी के बारे में

मान्यता प्राप्त होम्योपैथिक चिकित्सक के साथ ही इनका रुझान अध्यात्म की ओर प्रारंभ से रहा है। अपनी ज्ञान पिपासा शांत करने हेतु अनेक महात्माओं और गुरुओं के सम्पर्क में आये, परन्तु फिर भी मन की छटपटाहट का अंत नहीं हुआ, लेखक तपेश्वरी दयाल सिंह को अक्सर एक स्वप्न आता रहा “दो बड़ा सा विशाल पत्थर जो दो फीट ऊँचे हैं, आंसन की भांति विराजमान हैं। झरोखेदार खिड़कियाँ दोनों ओर हैं, तीन द्वार मेहराब द्वार हैं, इस विशाल हॉल में कुछ साधक बैठे हुए साधना कर रहे हैं, जिनके सर का आकार बड़े कटोरे के बराबर है व सभी के सर पे बाल नहीं है। यह स्वप्न साधक को परेशान किये रहता, अतः इस स्थान की खोज में अक्सर इधर उधर यात्रा करता रहा, आखिरकार मंदिर आसाम में आकर इस खोज को विराम मिला, वही विशाल हॉल, वहीं दो बड़े बड़े पत्थर, वहीं झरोखेदार खिड़कियाँ, वैसे ही दरवाजे। अब हमें ज्ञात हो गया, हमारा सम्बन्ध यही से है, अब मुझमें हुई सद्गुरु की खोज। उस क्षेत्र के उच्चत्तम कोटि के बगला उपासक “संतों बाबा” के बारे में ज्ञात हुआ, उनके पास लेखक पहुँचा, काफी देर तक तंत्र क्षेत्र की बात हुई, आखिर मनोदय बताया की “मैं आपको दीक्षा नहीं चाहता हूँ” संतों बाबा ने कहा बगलामुखी दीक्षा इतनी सस्ती नहीं है जो हर किसी को बता दी जाए। इस प्रकार तीसरे तौर पे उन्होंने लेखक को माँ पीताम्बरा की वामाचार्य दीक्षा प्रदान की। लेखक के दूसरे सद्गुरु “श्री योगेश्वरानंद” बगनाथ ने दक्षिणाचार दीक्षा प्रदान की। आज भी लेखक चिकित्सक का कार्य करते हुए, भगवती पीताम्बर की साधना में निरंतर प्रवृत्त के पथ पर अग्रसर है, और जन कल्याण के कार्यों में हमेशा सलग्न रहते हैं।

दादागुरु वसंत बाबा जी के बारे में


श्री बसंत बाबा जी (सद्गुरु) माँ कामाख्या धाम के चोटी के तांत्रिक थे। इनका बचपन काफी गरीबी और परेशानी में बीता। सद्गुरु श्री बसंत बाबा जी पेशे से मान्यता प्राप्त होमियोपैथिक चिकित्सक थे और माँ की सेवा में लगे रहते थे। इनका दाम्पत्य जीवन काफी सुगमता पूर्वक चल रहा था। इनके परिवार में माँ के आशीर्वाद से पुत्र रत्न प्राप्ति हुई।

उस समय के बाटा शू. कम्पनी के मालिक को कोई औलाद नहीं थी। इनोंने तांत्रिक प्रयोग किया और इस से उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई जो कि वर्तमान समय में मालिक है। उसके बाद बाटा शू. कम्पनी के मालिक ने सद्गुरुदेव को कुछ धन राशि प्रदान की जो की सद्गुरुदेव ने माँ कामाख्या धाम के पास स्थित नीलांचल पर्वत पर स्थित माँ पीताम्बर के मंदिर का जीर्णोंद्धार करने का कार्य शुरू किया तथा माँ के धाम तक जाने का जो अतिप दुर्गम मार्ग था उसकी भी बनावट का कार्य पूरा किया। वर्तमान में हमारे देश के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी सद्गुरु के पास उस समय आध्यात्मिक के विषय पर चर्चा करने आया करते थे।

दूसरे दादा गुरु योगेश्वरानंद जी

मुझे हमेशा से ही चोटी के सद्गुरुओं की खोज रही है। मेरी दूसरी खोज माँ ने मेरे दूसरे सद्गुरु श्री योगेश्वरानंद के रूप में पूरी की।

श्री योगेश्वरानंद (सद्गुरु) ने दस-दस गुरुओं से दीक्षा ग्रहण की थी। परंतु उसके बाद भी उनका मन शांत ना हुआ था। उनकी खोज पूरी ना हुई थी और अंत में उनकी खोज पूरी हुई और उनके जीवन में माँ की कृपा से सद्गुरु, स्वामी रामस्वरूप जी के प्रवचनों से प्रभावित होकर उन्होंने माँ पीताम्बरा की दीक्षा ग्रहण की और वर्तमान में देहरादून में निवासरत हैं। तंत्र के क्षेत्र में उनका योगदान काफी सराहनीय है। और इन्होंने कई तंत्र ग्रंथों की रचना की। इनका दांपत्य जीवन काफी खुशहाल रहा और उनके परिवार में एक पुत्र और एक पुत्री हैं। वर्तमान में दोनों का विवाह एक संभ्रांत परिवारों में सम्पन्न हुआ।

आइए मंगलमय प्रारब्ध का निर्माण करें

मनुष्य के कर्मों के अनुसार ही उसके प्रारब्ध का निर्माण होता है, जिसे भुगतना ही पड़ता है। जितना भी प्रारब्ध का क्षय जो हो स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है, केवल वर्तमान में संचालित कर्मों का ही परिणाम भुगतना पड़ता है। जब हम जानते हैं कि इस जन्म में की इन कर्मकांडों परिणाम प्रारब्ध बन रहे हैं, वह प्रारब्ध द्वारा अगले जन्मों में कर्मों का संचित परिणाम ही हो तो है, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि आने वाले भविष्य अपने ही इतिहास को जान कर तथा उसी अनुसार कार्य करें।

अब आते हैं जो हमारे जीवन के कष्टदायक दिन चल रहे हैं उन्हें कैसे सुधारा जाए हमारे पुरातन आचार्यों ने इसका निदान बहुत निश्चित कर दिया है उनके पुरातन प्रारब्ध को बदलना आज यह बड़ा तीव्र विज्ञान! तंत्र का मूल उद्देश्य है- आत्म साधनात्मक व्रत तथा वह मूर्तिमा। आत्म साधनात्मक के लिए मंत्रों द्वारा ही सबसे सरल व सशक्त मार्ग पाया गया है, जिसके कुण्डलिनी जागरण को मूल स्वरूप माना जाता है। तंत्र साधना में एक रहस्योद्घाटन है, कि जब विशेष किसी व्यक्ति के इसी कारण वह अन्य सभी धर्मों से विशिष्ट हो हैं यह जाति, उम्र, वर्ग, स्थान, लिंग आदि का भेद नहीं करता। विधाओं की उच्च कोटि की साधनाएँ हुई हैं जैसे लोमेशऋषि, लोला चम्पारानी आदि, भूमि स्थान व ऐश्वर्यवाली किन्नरिनी होती हैं अतः कुछ आचार्य ज्ञानी मर्मज्ञों ने बताया गया है। जिनमें सात आचार्य प्रमुख है –

माँ के मंदिर हेतु पुण्य दान करें

QR कोड स्कैन करें और दान करें

🙏 धन्यवाद 🙏

आपका यह दान धर्म, भक्ति और सेवा के पवित्र कार्य में सहायक सिद्ध होगा। माँ बगलामुखी आपकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करें और आपको शक्ति, सफलता व सुरक्षा प्रदान करें।

🔱  जय माँ बगलामुखी  🔱