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हिंदू तंत्र में माँ बगलामुखी

हिंदू तंत्र में माँ बगलामुखी को दश महाविद्याओं में वह शक्ति माना गया है, जो प्रवाह को रोकती नहीं, स्थिर करती है — जहाँ अन्य महाविद्याएँ सृजन या संहार करती हैं, वहाँ माँ बगलामुखी स्थिति की अधिष्ठात्री हैं। यह स्तम्भन शक्ति केवल बाहरी बाधाओं का शमन नहीं करती, बल्कि साधक के भीतर चल रहे अशांत विचारों, द्वंद्वों और विकारों को भी निःशब्द कर, उसे आत्मतत्त्व के सामने एकाग्र करती है।

तंत्रशास्त्र में माँ बगलामुखी को ‘वाक्-स्तम्भिनी’, ‘बुद्धि-निग्रहिणी’ और ‘कर्म-नियंत्रिका’ कहा गया है। यह वही शक्ति है जो प्रवृत्तियाँ जब विकराल रूप लें, तो उन्हें थामकर चेतना को मोड़ देती है — भीतर की लहरों को थामकर गहराई उत्पन्न करने वाली शक्ति।

यहाँ माँ बगलामुखी तांत्रिक विद्या की गहरी समझ दी गई है:

स्तम्भन विद्या का सार

माँ बगलामुखी की तांत्रिक विद्या का मूल स्तम्भन है — यानी अवांछित गति को रोकना। यह शक्ति केवल बाहरी नहीं, भीतर के विचारों, वासनाओं और चंचलता को भी स्थिर करती है।

चेतना का नियंत्रण

तंत्र कहता है कि जब शब्द, वाणी, कर्म और बुद्धि बेकाबू हो जाएँ, तब माँ का ध्यान उन्हें नियंत्रित करता है। माँ की शक्ति भीतर मौन को जाग्रत करती है।

आंतरिक शत्रुओं का शमन

तांत्रिक दृष्टि में शत्रु केवल व्यक्ति नहीं, क्रोध, मोह, भय, लोभ जैसी आंतरिक वृत्तियाँ हैं। माँ इनका स्तम्भन कर साधक को सशक्त बनाती हैं।

साधना का उद्देश्य

माँ की साधना केवल शत्रु नाश नहीं, बल्कि आत्मबल, मानसिक संतुलन और निर्णयशक्ति की प्राप्ति है। साधक माँ की कृपा से आत्मसाक्षात्कार की ओर बढ़ता है।

तांत्रिक साधना (आध्यात्मिक अभ्यास)

माँ बगलामुखी की तांत्रिक साधना साधक को केवल बाहरी सफलता नहीं, बल्कि भीतर स्थिरता, मौन और आत्म-चेतना की ओर ले जाती है। यह साधना सामान्य पूजा से भिन्न होती है — इसमें मंत्र, यंत्र और अग्नि के माध्यम से माँ की स्तम्भन शक्ति को जाग्रत किया जाता है। नीचे इन तीन प्रमुख साधना विधियों का सूक्ष्म विवरण प्रस्तुत है:

मंत्र जप

मंत्र केवल ध्वनि नहीं, ऊर्जा की तरंग है। माँ बगलामुखी के स्तम्भन स्वरूप को जाग्रत करने के लिए गुरु द्वारा प्रदत्त बीज मंत्रों का जप तांत्रिक साधना का मूल आधार है। यह जप साधक के विचारों की गति को नियंत्रित कर, उसे आंतरिक मौन की ओर ले जाता है। मंत्र साधक की वाणी, बुद्धि और भावों को माँ की चेतना से जोड़ देता है। गुरु-दीक्षित मंत्र को शुद्ध उच्चारण, विनम्रता और मौन के साथ जपना आवश्यक है।

यंत्र पूजा : बगलामुखी यंत्र 

बगलामुखी यंत्र माँ की शक्ति का त्रिकोणात्मक, संकेन्द्रित प्रतीक है। यह यंत्र साधक और माँ के बीच एक ऊर्जा-संचरण सेतु का कार्य करता है। पूजा करते समय इसे पीले वस्त्र पर स्थापित कर, हल्दी, पीले पुष्प, चने और दीप से पूजित किया जाता है। साधक इस यंत्र के माध्यम से अपने भीतर स्थित विकारों, भय और विघ्नों पर नियंत्रण स्थापित करता है। यह यंत्र केवल रक्षा नहीं, अंतःस्थित चेतना को स्थिर करने का उपकरण है।

होम (अग्नि अनुष्ठान)

अग्नि तंत्र में साक्षात चेतना का प्रतीक मानी जाती है। माँ बगलामुखी की साधना में जब साधक विशेष सामग्री — जैसे हल्दी, पीली सरसों, घी आदि — के साथ मंत्रबद्ध आहुतियाँ अर्पित करता है, तो यह क्रिया केवल कर्मकांड नहीं, एक ऊर्जा विन्यास बन जाती है। इस होम से साधक के चारों ओर एक तांत्रिक सुरक्षा-कवच निर्मित होता है, जो नकारात्मक शक्तियों, मानसिक शत्रुओं और बाह्य विघ्नों को रोकता है।

तांत्रिक क्रियाओं में माँ बगलामुखी

माँ बगलामुखी को तांत्रिक परंपरा में एक ऐसी महाशक्ति के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है जो न केवल बाहरी विघ्नों को स्तम्भित करती हैं, बल्कि साधक के भीतर के भय, भ्रम और अवरोधों को भी निष्क्रिय कर देती हैं। यही कारण है कि विविध तांत्रिक अनुष्ठानों, रक्षा प्रयोगों, न्यायिक सिद्धियों और विपरीत शक्तियों के प्रतिकार हेतु उनकी साधना को परम प्रभावशाली माना गया है।

शत्रुओं पर विजय

तांत्रिक ग्रंथों के अनुसार माँ बगलामुखी की उपासना से साधक को अपने विरोधियों पर वाणी, बुद्धि और निर्णय स्तर पर नियंत्रण की शक्ति प्राप्त होती है। उनकी पूजा न केवल दैहिक, मानसिक या सामाजिक शत्रुओं को रोकती है, बल्कि उनके षड्यंत्रों और प्रभावों को निष्क्रिय कर देती है। अतः उन्हें विजय की देवी कहा जाता है, जो शत्रुता को यथास्थान रोककर साधक को निर्भय बनाती हैं।

बाधाओं पर विजय

तंत्र में बाधाएँ केवल बाहरी घटनाएँ नहीं, अपितु भीतर की मानसिक अस्थिरता, संदेह, भ्रम और ऊर्जा का अवरोध भी होती हैं। माँ बगलामुखी की कृपा से साधक का मार्ग स्पष्ट होता है, निर्णय शक्ति तीव्र होती है और उसमें कर्म के प्रति आत्मविश्वास जन्म लेता है। इस कारण साधक आध्यात्मिक व लौकिक दोनों मार्गों में सहज गति प्राप्त करता है।

बुरी शक्तियों से सुरक्षा

माँ की साधना को विशेषतः काले जादू, अभिचार, टोने-टोटके, शाप और आत्मिक आघात जैसी अदृश्य नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा देने वाली माना गया है। तांत्रिकों का विश्वास है कि माँ का आह्वान करने से साधक के चारों ओर एक दिव्य स्तम्भन-कवच बनता है जो उसे न केवल किसी भी भय से बचाता है, बल्कि पराविद्याओं के दुष्प्रभावों को निःशक्त कर देता है।

रहस्यमय अंतर्दृष्टि और आध्यात्मिक विकास

माँ बगलामुखी की तांत्रिक विद्या साधक को केवल शत्रु निवारण या रक्षा की सीमित परिधियों से आगे ले जाकर आत्मिक विकास और चेतना की गहराई की यात्रा पर आमंत्रित करती है। यह वह मार्ग है जहाँ साधक को अपने भीतर की प्रतिध्वनि सुनाई देने लगती है — वह मौन, जहाँ से सच्चा परिवर्तन जन्म लेता है।

आंतरिक महारत

बगलामुखी की साधना का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि यह साधक को केवल बाहरी संघर्षों के लिए नहीं, अपने भीतर के अराजक भावों के लिए तैयार करती है। क्रोध, भय, संशय, मोह और द्वंद्व जैसे भाव — ये सभी साधना के पथ में बाधक हैं। माँ की साधना से साधक इन्हें केवल दबाना नहीं, देखना, स्वीकारना और पार करना सीखता है। यह अभ्यास अंततः साधक को मन के नियंत्रण, इंद्रिय संयम और विचारों की स्थिरता प्रदान करता है, जो आत्मविजय की नींव है।

द्वैत का विघटन

तांत्रिक साधना में ‘द्वैत’ का अर्थ है: मैं और शेष संसार के बीच की दूरी — जो माया, भ्रम, और अहंकार से निर्मित होती है। नियमित साधना इस कृत्रिम अंतर को धीरे-धीरे मिटाने लगती है। साधक अनुभव करता है कि वह माँ से पृथक नहीं है, बल्कि उसी चेतना का सजीव अंश है। यह अनुभव उसे सभी जीवों, परिस्थितियों और घटनाओं से एक गहरी करुणा और मौन एकता में बाँधता है। यही साक्षात्कार उसे सांसारिक बंधनों से ऊपर उठाकर एक स्थायी आंतरिक शांति की ओर ले जाता है।

खतरे और सावधानियाँ

माँ बगलामुखी की तांत्रिक साधना को प्राचीन ग्रंथों में अत्यंत प्रभावशाली और स्तम्भनकारी माना गया है, किन्तु साथ ही यह स्पष्ट भी किया गया है कि यदि इसे गुरुहीन, स्वार्थपूर्ण या अनुशासनहीन रूप से किया जाए, तो साधक को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से गहरा दुष्प्रभाव झेलना पड़ सकता है। यह साधना जितनी शक्तिशाली है, उतनी ही संयम और पवित्रता की माँग भी करती है।

उचित गुरु मार्गदर्शन

बगलामुखी साधना का प्रवेश द्वार गुरु है। तंत्र में यह स्पष्ट कहा गया है कि बिना दीक्षा या योग्य गुरु के मार्गदर्शन के यह साधना एक अनियंत्रित अग्नि बन सकती है। तांत्रिक ऊर्जा बहुत सूक्ष्म और तीव्र होती है — साधक यदि बिना समझ के प्रयोग करे, तो यह ऊर्जा उसके भीतर ही विद्रोह कर सकती है। गुरु साधक की चेतना की पात्रता को देखता है, फिर ही साधना का मार्ग देता है। किसी भी स्तर पर अज्ञानता, घमंड या आत्मनिर्भरता यहाँ घातक सिद्ध हो सकती है।

पवित्रता और इरादे

बगलामुखी साधना का उद्देश्य केवल आत्मरक्षा या शत्रु नियंत्रण नहीं, आंतरिक संतुलन और मौन शक्ति की प्राप्ति है। यदि कोई इसे स्वार्थ, प्रतिशोध या किसी को नुकसान पहुँचाने के लिए करता है, तो माँ की शक्ति पलटकर उसी को दंड देती है। साधक को आहार, विचार, व्यवहार, संकल्प और कर्म — सभी में पवित्रता रखनी होती है। केवल शब्दों से नहीं, इरादे और जीवनशैली से साधना के योग्य बनना पड़ता है।

इसे घर पर क्यों नहीं किया जा सकता

घर पर तांत्रिक साधना करना न केवल चुनौतीपूर्ण है, बल्कि कई बार खतरनाक भी। माँ बगलामुखी से जुड़ी साधनाएँ विशेष रूप से हवन और स्तम्भन क्रियाओं से युक्त होती हैं — जहाँ अत्यधिक सूक्ष्म तांत्रिक तरंगें उत्पन्न होती हैं। इन तरंगों को नियंत्रित करने के लिए निर्विघ्न, शक्ति-संयोजक और संरक्षित स्थान की आवश्यकता होती है। घर का वातावरण, उसमें रहने वाले अन्य लोगों की मानसिकता, दिशा और शुद्धता — ये सभी साधना की दिशा को प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए ऐसा माना गया है कि माँ बगलामुखी की तांत्रिक साधनाएँ केवल गुरु-संरक्षित विशेष साधना-स्थलों पर ही करनी चाहिए।

तंत्र में व्यापक महत्व

तांत्रिक दर्शन में माँ बगलामुखी को दिव्य स्तम्भन शक्ति के रूप में माना जाता है, जो अज्ञान और भय से ऊपर उठाने में सहायक होती हैं। वे शांत करने वाली चेतना की प्रतिनिधि हैं, जो जीवन में व्याप्त उथल-पुथल, मानसिक विक्षोभ और असंतुलित ऊर्जा को स्थिर करती हैं।

उनकी उपस्थिति साधक को आंतरिक स्पष्टता, बाहरी साहस और गहन स्थिरता प्रदान करती है।
तंत्र में यह माना गया है कि माँ की कृपा से साधक संघर्षों से नहीं भागता, बल्कि उन्हें केंद्रित दृष्टि से पार करता है
वह शांति जो भीतर स्थिर है, वही जीवन को संतुलित करती है।

॥ ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिव्हां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा ॥

ॐ हलीं
बगलामुखी प्रार्दुभाव कथाः-
शास्त्र के अनुसार सतयुग में सम्पूर्ण जगत को नष्ट करने वाला भयंकर तूफान आया । सम्पूर्ण प्रणीयों के जीवन पर आए संकट को देख कर भगवान बिष्णु बहुत चिन्तित होकर भगवान शिव के पास गए इस पर भगवान शिव ने भगवान बिष्णु को मां शक्ति की अराधना करने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद भगवान बिष्णु सौराष्ट्र देया में हरिद्रा नामक सरोवर के समीप जा कर आदि शक्ति को प्रसन्न करने के लिए जप करने लगे। भगवान बिष्णु के तप से प्रसन्न होकर मां भगवती सरोवर से बगलामुखी देवी के रूप में प्रकट हुई तथा उस भयंकर तूफान का सतम्भन कर दिया। इस लिए बगलामुखी देवी को सतम्भन की देवी भी कहा जाता है। बगलामुखी देवी पीले वस्त्र धारण करती है तथा इन्हें पीला रंग बहुत प्रिय है बगलामुखी देवी का एक नाम पीताम्बरा भी है।

बगलामुखी ध्यान मन्त्रः-
मध्ये सुधाब्धि डिमण्डप रत्न वेद्यम्
सिंहांसेनापरिगतां परिपीतवर्णाम् ।
पीताम्बराभरण माल्य विभषितां‍डी देवी
स्मारामि धृत मुदगर वैरिजीवम ||

बगलामुखी मूल मन्त्रः-
ॐ हलीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदंस्तम्भय।
जीव कीलय बुद्धिं विनाशय हलीं ॐ स्वाहाः ॥

बगलामुखी शाब्दिक अर्थ:-
बगलामुखी अर्थात बगलामुखमिव मुखं यस्याः सा॥
अर्थात बगला के समान मुख वाली देवी ।

बगलामुखी देवी का संक्षिप्त परिचय:-
बगलामुखी देवी तक की की देवी है। महाकाली के दशावतार जिन्हें दश महाविद्या के नाम से जाना जाता है। इन दश महाविद्याओं में आठवीं महाविद्या बगलामुखी देवी है। बगलामुखी देवी षटकर्म सिद्धि प्रदान करने वाली शक्ति है। साधक विशेषता शुत्रु नाश हेतू बगलामुखी देवी की साधना करते है। विद्वान आदिकाल से मारण मोहन वशीकरण सतम्भन उच्चाटन विद्वेषण हेतू मां बगलामुखी देवी तक विद्या का प्रयोग करते हैं। बगलामुखी को पीताम्बरा, शुनाशनी, ब्रहमास्त्र विद्या तथा गुप्त विद्या आदि नामों से सम्बोधित किया जाता है। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में बनस्खण्डी नामक स्थान स्थित प्राचीन बगलामुखी मन्दिर का सम्बन्ध रेतायुग से प्रतीत होता है बगलामुखी शतनाम स्त्रेत के अनुसार :
लंकापति ध्वंसकरी लंकेशरिपु वंदिता ।
लंकानाथ कुल हरा महारावण हारिणी ।।
अर्थात :- रावण तथा उसके कुल नाश करने वाली पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान जी की प्रेरणा से भगवान राम ने इस स्थान पर बगलामुखी की मूर्ति स्थापना कर तांत्रिक विधी से यज्ञ पूजन कर बगलामुखी की अराधना करने के उपरान्त रावण पर विजय प्राप्त की थी। कालांतर में बड़े-बड़े ऋषि मुनियों तथा महापुरूषों ने इस स्थान पर विशेष साधना की तथा सिऋियां प्राप्त कीं ।
मां बगलामुखी का पूजन शुनाश न्यायलये विजय प्राप्ति राजनैतिक विजय ऋण मुक्ति तथा भयंकर रोगनाशक एवं तन मन की बाधा निवारण हेतू विशेष फलदायी है। कलयुग में विशेष रूप बगलामुखी देवी शीघ्र प्रसन्न होकर साधकों की मनोकामना सिद्ध करती है।

॥ ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिव्हां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा ॥

ॐ हलीं
बगलामुखी प्रार्दुभाव कथाः-
शास्त्र के अनुसार सतयुग में सम्पूर्ण जगत को नष्ट करने वाला भयंकर तूफान आया । सम्पूर्ण प्रणीयों के जीवन पर आए संकट को देख कर भगवान बिष्णु बहुत चिन्तित होकर भगवान शिव के पास गए इस पर भगवान शिव ने भगवान बिष्णु को मां शक्ति की अराधना करने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद भगवान बिष्णु सौराष्ट्र देया में हरिद्रा नामक सरोवर के समीप जा कर आदि शक्ति को प्रसन्न करने के लिए जप करने लगे। भगवान बिष्णु के तप से प्रसन्न होकर मां भगवती सरोवर से बगलामुखी देवी के रूप में प्रकट हुई तथा उस भयंकर तूफान का सतम्भन कर दिया। इस लिए बगलामुखी देवी को सतम्भन की देवी भी कहा जाता है। बगलामुखी देवी पीले वस्त्र धारण करती है तथा इन्हें पीला रंग बहुत प्रिय है बगलामुखी देवी का एक नाम पीताम्बरा भी है।

बगलामुखी ध्यान मन्त्रः-
मध्ये सुधाब्धि डिमण्डप रत्न वेद्यम्
सिंहांसेनापरिगतां परिपीतवर्णाम् ।
पीताम्बराभरण माल्य विभषितां‍डी देवी
स्मारामि धृत मुदगर वैरिजीवम ||

बगलामुखी मूल मन्त्रः-
ॐ हलीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदंस्तम्भय।
जीव कीलय बुद्धिं विनाशय हलीं ॐ स्वाहाः ॥

बगलामुखी शाब्दिक अर्थ:-
बगलामुखी अर्थात बगलामुखमिव मुखं यस्याः सा॥
अर्थात बगला के समान मुख वाली देवी ।

बगलामुखी देवी का संक्षिप्त परिचय:-
बगलामुखी देवी तक की की देवी है। महाकाली के दशावतार जिन्हें दश महाविद्या के नाम से जाना जाता है। इन दश महाविद्याओं में आठवीं महाविद्या बगलामुखी देवी है। बगलामुखी देवी षटकर्म सिद्धि प्रदान करने वाली शक्ति है। साधक विशेषता शुत्रु नाश हेतू बगलामुखी देवी की साधना करते है। विद्वान आदिकाल से मारण मोहन वशीकरण सतम्भन उच्चाटन विद्वेषण हेतू मां बगलामुखी देवी तक विद्या का प्रयोग करते हैं। बगलामुखी को पीताम्बरा, शुनाशनी, ब्रहमास्त्र विद्या तथा गुप्त विद्या आदि नामों से सम्बोधित किया जाता है। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में बनस्खण्डी नामक स्थान स्थित प्राचीन बगलामुखी मन्दिर का सम्बन्ध रेतायुग से प्रतीत होता है बगलामुखी शतनाम स्त्रेत के अनुसार :
लंकापति ध्वंसकरी लंकेशरिपु वंदिता ।
लंकानाथ कुल हरा महारावण हारिणी ।।
अर्थात :- रावण तथा उसके कुल नाश करने वाली पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान जी की प्रेरणा से भगवान राम ने इस स्थान पर बगलामुखी की मूर्ति स्थापना कर तांत्रिक विधी से यज्ञ पूजन कर बगलामुखी की अराधना करने के उपरान्त रावण पर विजय प्राप्त की थी। कालांतर में बड़े-बड़े ऋषि मुनियों तथा महापुरूषों ने इस स्थान पर विशेष साधना की तथा सिऋियां प्राप्त कीं ।
मां बगलामुखी का पूजन शुनाश न्यायलये विजय प्राप्ति राजनैतिक विजय ऋण मुक्ति तथा भयंकर रोगनाशक एवं तन मन की बाधा निवारण हेतू विशेष फलदायी है। कलयुग में विशेष रूप बगलामुखी देवी शीघ्र प्रसन्न होकर साधकों की मनोकामना सिद्ध करती है।

बनखंडी में माँ का मंदिर

हिमालय की वादियों के मध्य, कांगड़ा की बनखंडी घाटी में स्थित माँ बगलामुखी का यह मंदिर केवल एक स्थल नहीं, बल्कि तांत्रिक चेतना का जाग्रत केन्द्र माना जाता है। यह स्थान भारत के प्राचीन शक्तिपीठों में से एक है जहाँ देवी की उपस्थिति केवल मूर्ति नहीं, मौन में प्रकट ऊर्जा के रूप में अनुभव की जाती है। तंत्र परंपरा में इसे उस स्थल के रूप में वर्णित किया गया है जहाँ साधकों को सहज रूप में स्तम्भन शक्ति का अनुभूति-सिद्ध दर्शन होता है।

पुराणों और प्राचीन आख्यानों के अनुसार, महाभारत काल में पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान देवी की कृपा प्राप्त करने हेतु यहाँ रात्रि में विशेष साधना संपन्न की थी। कहा जाता है कि माँ के आह्वान से अगले ही दिन उनकी रक्षण शक्ति प्रकट हुई और उन्होंने शत्रुओं के षड्यंत्रों को विफल किया। तभी से यह स्थान देवी के तांत्रिक स्वरूप — वाणी स्तम्भन, बुद्धि स्थिरता, और शत्रु विनाश — के लिए सिद्धभूमि माना गया।

यह मंदिर केवल तीर्थस्थल नहीं, बल्कि साधक के भीतर ऊर्जा संतुलन का सक्रिय केन्द्र है। यहाँ की ऊर्जा साधक के चित्त को शुद्ध करती है, भय और संशय को रोकती है और साधक को भीतर की शक्ति से परिचित कराती है। यंत्र, मंत्र और तांत्रिक हवन के विशेष विधान यहाँ वर्षों से नियमित होते रहे हैं, जिससे इस क्षेत्र में एक दिव्य कंपन और सुरक्षात्मक ऊर्जा परत निर्मित हो गई है।

यहाँ की एक विशेषता यह भी है कि माँ का स्वरूप भक्तों के समक्ष अत्यंत सजीव प्रतीत होता है — देवी की दृष्टि केवल मूर्ति की नहीं लगती, वह साधक के अंतर्मन तक जाती है। ध्यान, हवन, और पूजा के समय अनेक अनुभवी साधकों ने यहाँ दिव्य संकेत, स्वप्न, और भाव-स्पंदनों के रूप में माँ की उपस्थिति को प्रत्यक्ष अनुभव किया है। मंदिर का परिसर विशेष रूप से साधकों के लिए संरक्षित और अनुकूलित बना हुआ है।

जो लोग आंतरिक रूप से अडिग हैं और माँ की साधना को गुरु के निर्देशन में करना चाहते हैं, उनके लिए यह मंदिर एक तांत्रिक प्रशिक्षण भूमि के रूप में सिद्ध हो सकता है। यहाँ दी जाने वाली साधना न तो मात्र पूजा है, न ही प्रदर्शन — बल्कि वह एकांत में मौन के माध्यम से माँ की चेतना से जुड़ने की प्रक्रिया है। गुरुजनों का मत है कि जो साधक यहाँ पूर्ण निष्ठा और पवित्रता से साधना करता है, उसकी साधना शीघ्र सिद्ध होती है।

इस स्थल पर हवन हेतु विशेष वेदिक स्थान बना है जहाँ हल्दी, पीली सरसों, चना, चंदन और दिव्य सामग्री के साथ अग्नि अनुज्ञान किए जाते हैं। अनेक साधकों ने यहाँ दीक्षा प्राप्त कर साधना आरंभ की और जीवन की जटिलताओं में स्पष्ट मार्गदर्शन अनुभव किया। यहाँ तक कि कई भक्तों ने अपने जीवन के कठिनतम निर्णय माँ के दर्शन के बाद सहजता से लिए — और सफल भी हुए।

माँ बगलामुखी बनखंडी मंदिर में मौन की शक्ति के रूप में वास करती हैं। यहाँ शोर नहीं, स्थिरता बोलती है। उनकी दृष्टि और पीत आभा साधक को केवल शांति नहीं, निर्णय और साहस भी देती है। यह स्थान उस साधक के लिए विशेष फलदायक है जो केवल सिद्धि नहीं, आत्म-विकास की ओर बढ़ना चाहता है।

माँ बगलामुखी मंदिर, बनखंडी में गहन जुड़ाव और भक्ति का दिन

हिमाचल की पर्वतीय ऊर्जा और माँ बगलामुखी की स्तम्भन शक्ति का संगम बनखंडी में स्थित यह सिद्ध मंदिर एक ऐसा स्थल है जहाँ साधक न केवल पूजक होता है, बल्कि अनुभूत चेतना का पात्र बनता है। दिनभर यहाँ की गतिविधियाँ — माँ के श्रृंगार, पूजन, आरती, यज्ञ, और रात्रि हवन — साधक के भीतर एक क्रमबद्ध तांत्रिक परिवर्तन को जन्म देती हैं। यह दिन केवल धार्मिक नहीं, बल्कि साधना के हर स्तर पर माँ की ऊर्जा के साथ एक जीवंत संवाद होता है।

माता बगलामुखी मंदिर, बनखंडी में आगमन एवं तैयारी

सवेरे-सवेरे जब साधक मंदिर की ओर बढ़ते हैं, तब वातावरण में एक मौन श्रद्धा व्याप्त होती है। मंदिर का प्रांगण सुगंधित पुष्पों, पीले रंग की आभा और धीमे शंखनाद से पूर्ण होता है। यहाँ प्रवेश करना मात्र एक स्थल पर पहुँचना नहीं, बल्कि माँ की उपस्थिति में प्रवेश करना होता है। साधक अपनी साधना सामग्री जैसे यंत्र, जल, पीत वस्त्र, पुष्प व अर्पण समर्पण के साथ माँ के श्रीविग्रह के सम्मुख स्वयं को मौन अर्पित करता है।

चोल रसम और आरती: मां बगलामुखी मंदिर, बनखंडी में सुबह की रस्में

सुबह की चोल रस्म अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। माँ को हल्दी, केसर, पीत वस्त्र और पुष्पों से अलंकृत किया जाता है। यह केवल श्रृंगार नहीं, बल्कि तांत्रिक स्थापन प्रक्रिया है — जहाँ माँ को स्तम्भन स्वरूप में जाग्रत किया जाता है। चोल अर्पण के पश्चात होने वाली आरती में घंटा, शंख, मंत्र और दीपों का सामंजस्य साधक को भीतर तक आंदोलित कर देता है। यह आरती नकारात्मकता को स्थिर करती है और साधक के भीतर एक मौन ऊर्जा को स्थापित करती है।

माता बगलामुखी मंदिर में देर सुबह भोग अर्पण

युगभोग की परंपरा माँ को तृप्त करने की विधि नहीं, समर्पण की पूर्णता है। माँ को बेसन, चना, पीले फल, पीली मिठाई और घी से बनी विशेष प्रसाद सामग्री अर्पित की जाती है। यह भोग शुद्धता और सात्विकता का प्रतीक है। भक्त अपनी श्रद्धा को इन अन्नों में पिरोकर माँ को समर्पित करता है — जिससे वह प्रसाद तांत्रिक ऊर्जा से पूरित हो जाता है, और लौटकर साधक को आंतरिक पुष्टि व मानसिक शांति प्रदान करता है।

शाम की रस्में: माता बगलामुखी मंदिर, बनखंडी में झंडा रसम और शाम की आरती

संध्या होते ही मंदिर में विशेष झंडा रस्म होती है, जिसमें माँ को पीत ध्वज समर्पित किया जाता है। यह ध्वज संकल्प का प्रतीक होता है — साधक का निश्चय कि वह माँ की कृपा से भीतर के विकारों, भय और शत्रुओं को स्थिर करेगा। इसके पश्चात की आरती दिनभर की संचित ऊर्जा को नये संकल्प के साथ स्थिर करती है। दीयों की शृंखला, घंटियों की ध्वनि और मंत्रों की लय साधक को उस मौन बिंदु तक पहुँचाती है जहाँ आस्था और शक्ति एक हो जाती हैं।

मां बगलामुखी मंदिर, बनखंडी: देर रात हवन समारोह

रात्रि समय में होने वाला हवन इस पूरे दिवस की तांत्रिक पराकाष्ठा होता है। विशेष यंत्र, आसन और हवन सामग्री से अग्नि में मंत्रोच्चार के साथ माँ का आह्वान किया जाता है। हल्दी, पीली सरसों, घी, चना और विशेष सुगंधित समिधाओं से अग्नि में दी गई आहुतियाँ साधक के चारों ओर एक तांत्रिक सुरक्षा कवच का निर्माण करती हैं। यह हवन केवल क्रिया नहीं, माँ से मौन संवाद का वह क्षण है जहाँ साधक की चेतना में माँ की उपस्थिति मूर्त रूप में स्थापित हो जाती है।

कलयुग में महत्व

कलयुग में, जब धर्म का क्षय और अधर्म का उत्थान तीव्र होता है, तब माँ बगलामुखी जैसी स्तम्भन शक्ति की उपासना विशेष प्रभावकारी मानी जाती है। यह युग मानसिक अशांति, भ्रम, भय, रोग, आघात और निर्णयहीनता से ग्रस्त है — जहाँ व्यक्ति अपने शत्रु को नहीं, स्वयं के भीतर चल रही अशांति को हराने में असमर्थ रहता है। तंत्रशास्त्र में वर्णन आता है कि जब विचारों की गति विक्षिप्त हो, जब शब्द घायल कर दें और जब कर्म दिशा खो दें — तब माँ बगलामुखी की स्तम्भन शक्ति ही चित्त को स्थिर करती है। इस युग की विशेषता है कि यहाँ विरोध केवल बाहरी नहीं, बल्कि अंदर ही भीतर पलते विकार हैं — जैसे लोभ, द्वेष, अविश्वास, मोह और दोषारोपण। ऐसे में माँ की उपासना साधक को नकारात्मक ऊर्जा से मुक्त कर स्थिरता और निर्णय-शक्ति प्रदान करती है। कलयुग में माँ बगलामुखी की साधना का अर्थ केवल शत्रु को रोकना नहीं, बल्कि स्वयं की चेतना को पकड़कर उसमें मौन और विवेक को स्थापित करना है। ग्रंथों में स्पष्ट किया गया है कि इस युग में माँ बगलामुखी की उपासना अति शीघ्र फलदायिनी और रक्षा-सक्षम होती है — क्योंकि माँ का स्वरूप ही “वाणी, बुद्धि और कर्म” की गति को रोककर साधक को आत्मा के केंद्र में लाता है। यही कारण है कि कलयुग में जिन समस्याओं का कोई स्पष्ट हल नहीं दिखता, वहाँ माँ की साधना से मौन में समाधान उतर आता है। माँ की कृपा से न केवल भय दूर होता है, बल्कि साधक के जीवन में धर्म, साहस और आत्मिक आरक्षण की अनुभूति पुनः स्थापित होती है।

कलयुग में जीवन जितना जटिल होता जा रहा है, कई लोग इन अशांत समयों से निपटने के लिए दैवीय हस्तक्षेप की तलाश में प्राचीन परंपराओं और आध्यात्मिक प्रथाओं की ओर लौट रहे हैं। प्राचीन ज्ञान के अनुसार, शक्तिशाली महाविद्याओं में से एक माँ बगलामुखी की पूजा और भक्ति के बिना, जीवन अधूरा लग सकता है, जिसमें आनंद, उद्देश्य और शांति की कमी होती है। माँ बगलामुखी को एक ऐसी देवी के रूप में पूजा जाता है जो बुराई, स्थिर विरोधियों को पंगु बना सकती है और अपने भक्तों को नुकसान से बचा सकती है, जिससे इन कठिन समय में उनकी पूजा आवश्यक हो जाती है।
कलयुग में माँ बगलामुखी को समर्पित हवन, यज्ञ और अनुष्ठान करना अत्यधिक शुभ और परिवर्तनकारी माना जाता है। ये अनुष्ठान न केवल शत्रुओं, बीमारी और संघर्ष को दूर करने में मदद करते हैं बल्कि भक्तों को धन, समृद्धि और खुशी भी प्रदान करते हैं। माँ बगलामुखी के आशीर्वाद से, भक्त खुद को जीवन की प्रतिकूलताओं से सुरक्षित पाते हैं, दिव्य कृपा और सुरक्षा के साथ कलयुग की चुनौतियों को पार करने के लिए सशक्त होते हैं।

प्राचीन मंदिर माता श्री बंगला मुखी देवी ट्रस्ट बनखंडी

बनखंडी स्थित माँ बगलामुखी मंदिर का यह ट्रस्ट केवल एक प्रबंधन संस्था नहीं, बल्कि धर्म, सेवा और साधना को समर्पित एक चेतन संस्था है।
यह ट्रस्ट मंदिर की दिव्यता को संरक्षित रखते हुए, समाज और साधकों के लिए माँ की कृपा को सुगम और संगठित रूप में उपलब्ध कराने हेतु निरंतर कार्यरत है।

भक्त कल्याण

ट्रस्ट का प्रथम उद्देश्य है कि माँ के धाम में आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु को सुरक्षा, शांति और आंतरिक स्थिरता का अनुभव प्राप्त हो। ट्रस्ट सुनिश्चित करता है कि मंदिर परिसर में भक्तों को तांत्रिक मर्यादा, आध्यात्मिक व्यवस्था और शुद्ध वातावरण सहज रूप से प्राप्त हो।

धार्मिक सेवाएं

माँ की कृपा को जन-जन तक पहुँचाने के लिए ट्रस्ट द्वारा नित्य पूजन, आरती, यज्ञ, हवन और विशेष पर्वों पर तांत्रिक अनुष्ठानों की व्यवस्था की जाती है। ये सभी सेवाएँ गुरु-परंपरा और ग्रंथ-सम्मत विधियों से संचालित होती हैं।

सामुदायिक सहायता

ट्रस्ट केवल धार्मिक नहीं, सेवा और करुणा के माध्यम से समाज की पीड़ा से जुड़ा हुआ है। आसपास के गाँवों और ज़रूरतमंदों को चिकित्सा, पोषण, वस्त्र, और शिक्षा संबंधी सहायता प्रदान कर ट्रस्ट माँ की ऊर्जा को लोककल्याण से जोड़ता है।

सांस्कृतिक संरक्षण:

माँ बगलामुखी की तांत्रिक परंपरा को सुरक्षित रखने हेतु ट्रस्ट द्वारा पुरातन रीति-रिवाज, परंपरागत वाद्य, लोकधाराएँ और प्राचीन अनुष्ठान पद्धतियों का विशेष ध्यान रखा जाता है। यह प्रयास धर्म और संस्कृति के मूल तंतु को जीवित रखता है।

त्यौहार और कार्यक्रम:

विशेष पर्वों जैसे नवरात्र, गुरु पूर्णिमा, बगलामुखी जयंती आदि पर ट्रस्ट द्वारा विस्तृत साधना कार्यक्रम, यज्ञ, दुर्गा सप्तशती पाठ, भंडारा व अन्य आध्यात्मिक आयोजनों की योजना बनाई जाती है। इन आयोजनों के माध्यम से भक्तों को एकत्र साधना का सामूहिक बल प्राप्त होता है।

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आपका यह दान धर्म, भक्ति और सेवा के पवित्र कार्य में सहायक सिद्ध होगा। माँ बगलामुखी आपकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करें और आपको शक्ति, सफलता व सुरक्षा प्रदान करें।

🔱  जय माँ बगलामुखी  🔱