हमारा एक शिष्य जो अपने शत्रुओं से भयंकर रूप से पीड़ित था, शत्रु अति बलशाली व पैसों वाला था, उसके दस-दस ट्रक सड़कों पर दौड़ते थे और हमारा शिष्य इनके आगे कहीं टिक ही नहीं सकता तथा उसकी पत्नी से शत्रु के गुप्त सम्बन्ध थे, बस यहीं से शत्रुता जो प्रारम्भ हुई आज तक इनकी बरबादी का कारण बनी रही। शिष्य की सारी व्यथा सुनने के उपरान्त इन्हें दिशा-निर्देश दिया बगला शताक्षरी मंत्र के दस हजार जप का संकल्प लें, परन्तु दस हजार जप के उपरान्त कुछ नहीं हुआ।
मेरा शिष्य काफी हताशा की स्थिति में आ गया था, मैने उसे ढाढस बंधाया व वास्तिविकता से परिचय कराया, ये कलियुग है, इसमें मंत्र का चार गुना जप करने के उपरान्त ही वह फलीभूत होता है।
अतः लगे रहो सफलता मिल कर रहेगी, यदि सफल नहीं होते तो यह अनुष्ठान तुम्हारे लिए मैं ही कर दूंगा।
मेरे शिष्य के अन्दर अजब आशा का संचार हुआ। अन्तोगत्वा उसने चारों अनुष्ठान निर्विघ्न पूर्ण कर लिया। एक माह व्यतीत हो गए कोई परिणाम दृष्टिगोचर नहीं हो रहा था, उसके निराश मन को उत्साहित करते हुए मैने उसे माँ को कपूर देने को कहा। आज रात एक बड़ा कपूर जला कर माँ का आवाहन करना है- हे माँ! आपको मैं कपूर की ज्योति देना चाहता हूँ, आप आए और इसे ग्रहण करें, जैसे ही कपूर बुझने वाला हो थोड़ा कपूर उस पर रखते रहें और अपनी सारी व्यथा उनसे कहते रहे, कल्पना करें माँ सामने ही है, जैसे अपनी व्यथा सुनाते हुए मेरे सामने रोए थे, वैसे ही माँ को अपनी सारी व्यथा सुना दो, आंसू स्वतः ही अविरल गति से बहने लगेगे, इससे माँ तुरन्त ही तुम्हारे कार्य का सम्पादन करने के लिए कुछ न कुछ अवश्य करेगी, भक्त की छटपटाहट माँ को बैचेन कर देती है।
उसने मेरे दिशा-निर्देश का सटीक पालन किया। दूसरे ही दिन से समाचार मिलने प्रारम्भ हो गए, उसकी ट्रकों का भयंकर एक्सीडेंट होना प्रारम्भ हो गया, अब दस की दस ट्रकें बिक चुकी हैं। शत्रु की पत्नी पागल हो गई, उसके पुत्रों से ऐसी अनबन हुई कि इन्हें छोड़ कर अलग रहने लगे, माँ का क्रोध यही नहीं रुका, शत्रु को फालिज का अटैक पड़ा बोलने व चलने में लाचार हो गए तब जाकर मेरे शिष्य की पत्नी इनके चंगुल से छूट पाई।
क्रिया इस प्रकार की गई –
शताक्षरी मंत्र
“|| हलीं ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं ग्लौं हलीं वगलामुखि स्फुर स्फुर सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय स्तम्भय प्रस्फुर प्रस्फुर विकटांगि घोररूपि जिह्वां कीलय महाभ्मरि बुद्धिं नाशय विराण्मयि सर्व-प्रज्ञा-मयी प्रज्ञां नाशय, उन्मादं कुरु कुरु, मनो- पहारिणि हलीं ग्लौं श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं हलीं स्वाहा ||”
विनियोग
ॐ अस्य श्री बगलामुखि शताक्षरी – महा मन्त्रस्य श्री ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, जगत्-स्तम्भन-कारिणी श्री बगला मुखी देवता, ह्लीं शक्तिः, ऐं कीलकं, जगत-स्तम्भन – कारिणी श्री बगलामुखी – देवताम्बा प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।
ऋष्यादि-न्यास
श्री ब्रह्मा ऋषये नमः शिरसे,
गायत्री छन्दसे नमः मुखे,
जगत्-स्तम्भन-कारिणी श्री बगला मुखी-देवतायै नमः हृदि,
ह्रीं ब्रीजाय नमः लिंगे,
ह्रीं शक्तये नमः पादयोः,
ऐं कीलकाय नमः सर्वागे ।
जगत् स्तम्भन-कारिणी श्री बगलामुखी देवताम्बा -प्रीत्यर्थे जपे विनियोगाः नमः अंजली ।
कर न्यास
ॐ हाँ अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा ।
ॐ हं मध्यमाभ्यां वषट् ।
ॐ हैं अनामिकाभ्यां हूं।
ऊँ ह्रौं कनिष्ठाभ्यां वौषट् ।
ॐ ह्रः करतल करपृष्ठाभ्यां फट् ।
अंग न्यास
ॐ ह्रां हृदयाय नमः |
ॐ ह्रीं शिरस स्वाहा ।
ॐ हूं शिखायै वषट्।
ॐ हैं कवचाय हुं।
ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ऊँ ह्रः अस्त्राय फट् ।
ध्यान
पीताम्बरधरां सौम्यां, पीत-भूषण-भूषिताम्।
स्वर्ण-सिहासनस्थां च मूले कल्प-तरोरधः ।।
वैरि-जिह्वा भेदनार्थ, छुरिकां विभ्रतीं शिवाम् |
पान पात्रं गदां पाशं, धारयन्तीं भजाम्यहम् ।।
नोट:
सांकेतिक शब्द
- ह्रीं: सतब्ध माया, स्तम्भ माया, स्थिर माया
- ऐं: वाग्भव
- भुवनेशी शक्ति बज
- क्लीं: काम-राज
- श्रीं: श्री-बीज
- ग्लौ: शक्ति – वाराह
पच्चाङग पुरश्चरण (जप, हवन, तर्पण, मार्जिन, ब्राह्मण भोज या गुरु भोज) करने से ही मंत्र सिद्ध होता है। तब अभीष्ठ कामना की पूर्ति के लिए उसका प्रयोग करते हैं। जपान्त में दशांश पद्धति से हवन, तर्पण, मार्जन व ब्राह्मण भोजन सम्पन्न करते हैं।
|| जय माँ बगलामुखी ||