जिस समाज में हम रहते हैं, वहाँ भाँति-भाँति के लोग होते हैं — कुछ अच्छे और कुछ बुरे। मीठी बातें करने वाले सभी लोग आपके हितेषी हों, यह आवश्यक नहीं। अनुभव बताता है कि हर किसी पर विश्वास करना ठीक नहीं होता। ऐसे में भगवती पीताम्बरा की साधना अत्यंत आवश्यक हो जाती है। चाहे ऐहिक कष्ट हों या पारलौकिक, देश या समाज के दुरूह संकट हों या छुपे हुए शत्रु — उनका नाश केवल भगवती पीताम्बरा के पीले उपचारों द्वारा ही संभव है।
“यन्नि तान्त्रमा विष्करोति विद्विषः सेयं पीता वयवः पूज्या।”
बगलामुखी उपनिषद् में यह लिखा है और मेरे अनुभव में भी इसकी प्रमाणिकता अनेक बार सिद्ध हुई है। जो साधक भगवती की साधना करता है, उसे कभी पराजय का सामना नहीं करना पड़ता। वे लौकिक वैभव की दात्री हैं और साथ ही काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या आदि आंतरिक शत्रुओं का भी नाश करती हैं। साधना के विघ्नों को हटाकर साधक की बुद्धि और मन को स्थिर कर देती हैं और स्वयं की ओर आकर्षित करती हैं। इससे साधक का जीवन शांतिमय बनता है और वह निर्भय होकर साधना में आगे बढ़ता है।
भगवती पीताम्बरा शीघ्र सिद्धिदायिनी हैं। वे साधक को लौकिक सम्पत्तियों से सम्पन्न करती हैं और अंततः मोक्ष भी प्रदान करती हैं।
साधना कैसे करें?
तंत्र का दृष्टिकोण व्यापक है — इसमें उम्र, जाति, लिंग, धर्म आदि का कोई भेद नहीं है। मैं एक मुस्लिम साधक को जानता हूँ जो माँ पीताम्बरा के उच्चकोटि के साधक हैं।
तंत्र में दीक्षा का विधान पुरातन काल से चला आ रहा है, जिसमें गुरु पहले ही दिन से शिष्य को विशेष तकनीकों द्वारा शक्ति प्रदान करता है। साधक को गुरु के निर्देशों का पालन करते हुए अपनी शक्तियों का विकास करना होता है। इससे धीरे-धीरे उसे माँ की निकटता का अनुभव होने लगता है और जीवन में चमत्कार घटित होने लगते हैं।
परन्तु यह ध्यान रखें कि चमत्कार ही मंज़िल नहीं है। साधक को निरंतर आगे बढ़ते रहना होता है। जैसे-जैसे साधक की चेतना विकसित होती है, उसका अंतःकरण माँ के पीले वर्ण की भक्ति से रंगा जाने लगता है। यही परिवर्तन ‘कुण्डलिनी जागरण’ कहलाता है।
कुण्डलिनी जागरण कठिन माने जाने के बावजूद माँ पीताम्बरा की कृपा से योग्य साधकों को सहजता से प्राप्त होता है — बिना किसी कठिन परिश्रम के।
गुरु का महत्व
साधना योग्य गुरु के मार्गदर्शन में ही करनी चाहिए। पुस्तकों से केवल ज्ञान प्राप्त होता है, परंतु गुरु मार्ग दिखाते हैं। गुरु और शिष्य दोनों को एक-दूसरे को जान समझकर ही दीक्षा लेनी चाहिए। कहा गया है:
“गुरु कीजै जान कर, पानी पीजै छान कर।”
यदि योग्य शिष्य नहीं होगा तो वह विद्या का दुरुपयोग कर सकता है, जिसका दंड गुरु को भी भोगना पड़ता है। गुरु परम्परा में दीक्षा केवल योग्य पात्र को दी जाती है। मेरे गुरु बसन्त बाबा ने तीन वर्षों के बाद मुझे दीक्षा दी, यह कहते हुए कि —
“यह इतनी सस्ती नहीं कि हर एक को बता दी जाए।”
माँ का वचन
माँ बगलामुखी स्वयं कहती हैं:
“जो भक्त शारीरिक आरोग्य हेतु अथवा वैरियों के निग्रह के लिए दिन या रात एक सहस्त्र आहुतियाँ देता है, उसे अतिशीघ्र सिद्धि प्राप्त होती है।”
मेरे नाम का उच्चारण करते ही सभी विघ्न दूर हो जाते हैं और शत्रु भयभीत हो जाते हैं।
ध्यान का स्वरूप
रत्ननिर्मित मंडप में, स्वर्ण सिंहासन पर पीताम्बरा देवी बैठी हैं। उनके हाथ में गदा और मुद्गर है, वे शत्रु की जिह्वा पकड़े हुए हैं। मुकुट पर चंद्रमा सुशोभित है। वे स्वर्ण आभूषणों से विभूषित हैं।
हेमवर्णा, पीत चम्पा की माला धारण किए हुए, गरूड़ वेग से विचरण करने वाली माँ को प्रणाम है।
साधना की तैयारी
साधना के लिए पहले ज्ञान प्राप्त करें और उसे व्यवहार में लाएं। मंत्र जप करते समय मन और बुद्धि दोनों को एकाग्र रखें। जब दोनों साथ हों, तभी मंत्र सिद्ध होता है और ध्यान की अवस्था सहजता से प्राप्त होती है।
गुरु न मिले तो क्या करें?
यदि गुरु नहीं मिलते तो किसी अनुभवी लेखक या साधक के चित्र को सामने रखकर उन्हें मानसिक गुरु मानकर बीज मंत्र “ह्ल्रीं” का जप प्रारंभ करें।
पीताम्बरा यंत्र की प्राण-प्रतिष्ठा करें, नित्य पूजन करें। पीली वस्त्रधारी होकर हल्दी की माला से जप करें।
एक अनुष्ठान पूर्ण हो जाने के बाद दूसरा, तीसरा, चौथा अनुष्ठान करें।
मंत्र अनुक्रम:
- पहला अनुष्ठान: ह्लीं स्वाहा — 1 लाख जप
- दूसरा: ऊँ आँ ह्लीं क्लीं — 1 लाख जप
- तीसरा: ऊँ आँ ह्लीं क्लीं हुं फट् स्वाहा — 1 लाख जप
हर जप के बीच 3-4 दिन का विश्राम करें।
इस क्रम से साधना की भूमि दृढ़ होती है और आप मूल मंत्र जप के अधिकारी बनते हैं। फिर मूल मंत्र का 1 लाख जप कर चार बार पुरश्चरण पूर्ण करें। जप का समय रात्रि 10 से 2 सर्वोत्तम है।
अनुष्ठान अनुक्रम:
- जप का दशांश हवन
- हवन का दशांश तर्पण
- तर्पण का दशांश मार्जन
- मार्जन का दशांश ब्राह्मण भोज
यदि ब्राह्मण भोज संभव न हो तो गुरु की आज्ञा से गुरुभोज करें।
अङ्ग न्यास:
- ॐ ह्र हृदयाय नमः
- ॐ ह्री शिरसे स्वाहा
- ॐ हुं शिखायै वषट्
- ॐ हौं कवचाय हुं
- ॐ ह्रीं नेत्रत्रयाय औषट्
- ॐ हः अस्त्राय फट्
कर न्यास:
- ॐ ह्लीं अंगुष्ठाभ्यां नमः
- ॐ ह्लीं तर्जनीभ्यां स्वाहा
- ॐ ह्लीं मध्यमाभ्यां वषट्
- ॐ ह्लीं अनामिकाभ्यां हुं
- ॐ ह्लीं कनिष्ठाभ्यां वौषट्
- ॐ ह्लीं करतल-पृष्ठाभ्यां नमः
ध्यान:
वादी मूकति, रङकति क्षिति-पति वैश्वानरः शीतति, क्रोधी शाम्यति, दुर्जनः सुजनति, क्षि प्रानुग खत्रजति। गर्वी खर्वति सर्व विच्च जड़ति त्वद्-यन्त्रणा यन्त्रितः, श्री नित्ये! बगलामुखि! प्रति दिनं कल्याणि तुभ्यं नमः॥
सामग्री:
- पीसी हल्दी – 1 किलो
- सुनहरी हरताल – 20 ग्राम
- सरसों का तेल – 200 ग्राम
- बेसन के लड्डू
- मालकांगनी – 500 ग्राम
- पिसा सेंधा नमक – 1 चम्मच
- लौंग – 50 ग्राम
- समिधा – आम/नीम की लकड़ी
यह सम्पूर्ण साधना विधि उन साधकों के लिए है जो आत्मबल, आत्मरक्षा और सिद्धि की दिशा में माँ पीताम्बरा के मार्ग पर चलना चाहते हैं। यह साधना जितनी प्रभावशाली है, उतनी ही शुद्धता, निष्ठा और सतत अभ्यास भी मांगती है।
|| जय माँ बगलामुखी ||