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Baglatd

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बगलामुखी कल्प विधान

इसमें माँ बगलामुखी का सर्वांग पूजन आगे दी विधि के अनुसार करें। सर्वप्रथम 3 बार मूलमंत्र से प्राणायाम करें बाएं नथुने से धीरे-धीरे सांस खींच कर उसे तब तक रोके रहे जब तक छटपटाहट महसूस न होने लगे फिर इसे दांए नथुने से धीरे-धीरे बाहर छोडे पुनः दांए से खींच कर बाए नथुने से सांस छोड़ें यह एक प्राणायाम हुआ, इस प्रकार तीन बार कर, मूल मंत्र का 108 बार जाप कर, दिग्बन्धन के समय सम्बन्धित दिशा में चुटकी बजाए –

दिग्बन्धन –

ॐ ऐं ह्ल्रीं श्रीं श्यामा माँ पूर्वतः पातु ।

ॐ ऐं ह्ल्रीं श्रीं आग्नेय्यां पातु तारिणी ।।

ॐ ऐं ह्ल्रीं श्रीं माहविद्या दक्षिणे तु ।

ॐ ऐं ह्ल्रीं श्रीं नैर्ऋत्यां षोडशी तथा ।।

ॐ ऐं ह्ल्रीं श्रीं भुवनेशी पिश्रमायाम् ।

ॐ ऐं ह्ल्रीं श्रीं वायव्यां बगलामुखी ।।

ॐ ऐं ह्ल्रीं श्रीं उत्तरें छिन्नमस्ता च ।

ॐ ऐं ह्ल्रीं श्रीं ऐशान्यां धूमावती तथा ।।

ॐ ऐं ह्ल्रीं श्रीं ऊर्ध्व तु, कमला पातु ।

ॐ ऐं ह्ल्रीं श्रीं अन्तरिक्षं सर्वदेवता ।।

ॐ ऐं ह्ल्रीं श्रीं अदस्तात् चैव मातङ्गी ।

ॐ ऐं ह्ल्रीं श्रीं सर्वदिग् बगलामुखी ।।

विनियोग – विनियोग बोल कर जल पृथ्वी पर डाले। दांए हाथ में जल लेकर

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं ब्रह्मास्त सिद्ध प्रयोग स्त्रोत मन्त्रस्य भगवान नारद ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, बगलामुखी देवता, ह्रूं बीजम् ई शक्ति, लं कीलकं, मम सर्वार्थ साधन – सिद्धयर्थे पाठे विनियोग। फिर सम्बन्धित स्थानो को छुए

ॐ भगवते नारदाय ऋषये नमः शिरसि

ऊँ ह्रां ह्रीं हूं हैं ह्रौं ह्रः श्यामा देव्यै नमः ललाटे।

ॐ ह्रां ह्रीं हूं हैं ह्रौं ह्रः तारा देव्यै नमः कर्णयोः ।

ॐ ह्रां ह्रीं हूं हैं ह्रौं ह्रः महा विद्यायै नमः भवोर्मध्ये । 

ॐ ह्रां ह्रीं हूं हैं ह्रौं ह्रः षोडशी देव्यै नमः नेत्रयो। 

ॐ ह्रां ह्रीं हूं हैं ह्रौं ह्रः अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे । 

ॐ ह्रां ह्रीं हूं हैं ह्रौं ह्रः श्री बगला मुखी देव्यै नमः हृदये ।

ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रूं हैं ह्रौं ह्रः बगला भुवनेश्वरी भ्यां नमः नासिकयोः। 

ॐ ह्रां ह्रीं हूं हैं ह्रौं ह्रः छिन्न मस्ता देव्यै नमः नाभौ । 

ॐ ह्रां ह्रीं हूं हैं ह्रौं ह्रः धूमावती देव्यै नमः कटयाम् । 

ॐ ह्रां ह्रीं हूं हैं ह्रौं ह्रः कमला देव्यै नमः गुहो । 

ऊँ ह्रां ह्रीं हूं हैं ह्रौं ह्रः श्री मातंगी देव्यै नमः पादयो। 

ॐ ह्रां ह्रीं हूं हैं ह्रौं ह्रः ही बीजाय नमः नाभौ । 

ॐ ह्रां ह्रीं हूं हैं ह्रौं ह्रः ही कीलकाय नमः सर्वाङगे । 

मम सर्वार्थ साधने बगला देव्यै जपे विनियोगः । (जल पृथ्वी पर डाल दे ) ।

कर न्यास-

ऊँ हलं बगलामुखी अड.गुष्ठाभ्यां नमः । 

ॐ ह्लीं बगलामुखी तर्जनीभ्यां नमः । 

ॐ लूं बगलामुखी मध्यमा भ्यां नमः । 

ऊँ हलेँ बगलामुखी अनामिका भ्यां नमः । 

ऊँ लौं बगलामुखी कनिष्ठिकाभ्यां नमः । 

ॐ हलः बगलामुखी करतल कर पृष्ठा भ्यां नमः ।

हृदयदि न्यास-

ॐ ह्रीं हृदयाय नमः । (हृदय को दांए हाथ से स्पर्श करें) 

बगलामुखी शिरसे स्वाहा । ( सिर का स्पर्श करें) 

सर्व दुष्टानां शिखायै वषट्। (शिखा का स्पर्श करें) 

वाचं मुखं पदं स्तम्भय कवचाय हुम् । (कवच बनाएं) 

जिह्वां कीलय् नेत्रयाय वौषट (नेत्रों का स्पर्श करें)

बुद्धि विनाशाय ॐ हलीं स्वाहा (सिर के पीछे से दाए हाथ से चुटकी बजाते हु

दांए हाथ की गदेली पर बांए हाथ की तर्जनी व मध्यमा से तीन बार ताली बजाए ।)

कवच – दांए हाथ की उंगलियाँ बाए कंधे पर रखे व ठीक इसका उल्टा अर्थात् बांए हाथ की उगलियाँ दाहिने कंधे पर रखे, इस भांति सीने पर कवच की मुद्रा बनाते हैं।

ध्यान

सौवर्णासन संस्थिता त्रिनयनां पीतांशु कोल्लासिनीं, हेमा भाङग रूचि शशाङक मुकुटां सच्चम्पक स्त्रग्युताम् । हस्तै मुद्गर पाश वज्र रसनाः संविधतीं भूषणैः । र्व्याप्ताङग बगलामुखी त्रिजगतां संस्तम्भिनीं चिन्तयेत।।

यन्त्रोद्वार

त्रिकोणं चैव षट्कोणं, वसु-पत्रं ततः परम्। पुनश्च वसु-पत्रं, वर्तुलं च प्रकल्पयेत् ।। षोडशारं ततः पश्चात्, चतुरस्त्रं विधीयते । वर्तुलं चतुरस्तं च मध्ये मायां समालिखेत् ।।

नोट – माँ बगलामुखी के उपरोक्त यन्त्रोंवार वाला ही यंत्र प्रयोग करें, बाजार में इनके विभिन्न प्रकार के यंत्र मिलते हैं। इसकी विधिवत् प्राण प्रतिष्ठा कर, सर्वांग पूजन करते हैं। पीले वस्त्र पर प्राण प्रतिष्ठित यंत्र स्थापित कर जहाँ-जहाँ पूजयामि है वहाँ वहाँ पुष्प की पंखुड़ियाँ सामने प्लेट में डालते जाए व तर्पयामि भी जल से करते रहें ।

आदौ त्रिकोण देवताः पूजयेत् –

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रोधिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं स्तंभिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्री श्रीं चामर धारिण्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

पुनस्त्रि कोणे –

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ओडयान पीठाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं जालन्धर पीठाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं कामगिरि पीठाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि ।

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं अनन्त नाथाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्रीकण्ठ नाथाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं दन्तात्रेय नाथाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

अथ षट्कोणे-

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सुभगायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं भग वाहिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं भगमालिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं भग शुद्धायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं भग पत्न्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि ।

अथ वसुपत्रे –

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं ब्राह्म्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं माहेश्वर्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं कौमार्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वैष्णव्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वाराहौ स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं इन्द्राण्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं चामुण्डायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि ।

अथ द्वितीय वसुपत्रे –

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं जयाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं विजयाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं अजिताय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि | 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं अपराजिताय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं जृम्भिण्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं स्तम्भिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं मोहिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं आकर्षिण्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि |

अथ पत्राग्रे-

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं असिताडग भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं रूरू भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं चण्ड भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रोध भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं उन्मन्त भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं कपालि भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं भीषण भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं संहार भैरवाय स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि ।

षोडश दले-

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं बगला मुख्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं स्तम्भिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं जृम्भिण्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं मोहिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं चच्चत्रायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं अचलायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि। 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वश्यायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं कालिकायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं कल्मषायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं छात्रयै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं काल्पान्तायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि | 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं आकर्षिण्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं शाकिन्यै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं अष्ट गन्धायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं भोगेच्छायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि । 

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं भाविकायै स्वाहा पूजयामि नमः तर्पयामि ।

मन्त्र पाठ – 108 बार पाठ कर, स्त्रोत का पाठ करें।

“ ॐ ऐं ह्रीं श्रीं बगला मुखि सर्व दुष्टानां वश्यं कुरू कुरू कलीं कलीं ह्रीं हुं फट् स्वाहा । ॐ हलं बगलामुखि श्री बगलामुखि दुष्टान् भिन्धि भिन्धि, छिन्धि छिन्धि, पर मन्त्रान् निवारय निवारय, वीर चक्र छेदय छेदय, वृहस्पति मुखं स्तम्भय स्तम्भय, ॐ ह्रीं अरिष्ट स्तम्भनं कुरू कुरू स्वाहा, ॐ ह्रीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।”  (108 बार पाठ करें)

स्त्रोत्र –

ब्रह्मास्त्रां प्रवक्ष्यामि बगलां नारद सेविताम् ।

देव गन्धर्वयक्षादि सेवित पाद पडकजाम् ।।

त्रैलोक्य स्तम्भिनी विद्या सर्व शत्रु वशडकरी आकर्षणकरी उच्चाटनकरी विद्वेषणकरी जारणकारी मारणकरी जृम्भणकरी स्तम्भनकरी ब्रह्मास्त्रेण सर्व वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलां बगलामुखि हुं फट्

स्वाहा ।

ऊँ हलं द्राविणि द्राविणि भ्रामिण भ्रामिणि एहि एहि सर्व भूतान् उच्चाटय उच्च्चाटय सर्व दुष्टान् निवारय निवारय भूत प्रेत-पिशाच – डाकिनी शाकिनीः छिन्धि छिन्धि, खड्गेन भिन्धि भिन्धि मुद्गरेण संमारय मारय, दुष्टान् भक्षय- भक्षय, ससैन्यं भूपतिं कीलय मुख स्तम्भनं कुरू कुरू ऊँ हलां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

आत्म-रक्षा ब्रह्म-रक्षा, विष्णु-रक्षा रूद्र-रक्षा, इन्द्र- रक्षा, अग्नि-रक्षा, यम-रक्षा, नैर्ऋत-रक्षा, वायु-रक्षा, कुवेर रक्षा, ईशान रक्षा, सर्व रक्षा, भूत-प्रेत, पिशाच डाकिनी शाकिनी-रक्षा- अग्नि वैताल रक्षा गण- गन्धर्व- रक्षा, तस्मात् सर्वरक्षां कुरू कुरू, व्याध – गज सिंह रक्षा गण तस्कर रक्षा, तस्मात् सर्व बन्ध्यामि ॐ हलां बगलामुखि हुँ फट् स्वाहा ।

ॐ ह्ल्रीं भो बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्ल्रीं ॐ स्वाह ।

ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं बगलामुखि एहि एहि पूर्व दिशायां बन्धय बन्धय इन्द्रस्य मुखं स्तम्भ-स्तम्भ इन्द्र शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ॐ ह्लीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ॐ ऐं ह्लीं श्रीं पीताम्बरे एहि एहि अग्नि दिशायां बन्धय बन्धय अग्नि मुखं स्तम्भय स्तम्भय अग्नि शस्त्र निवारय निवारय सर्व सैन्य कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ॐ हलीं वश्यं कुरू ऊँ हलां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं महिष मर्दिनि एहि एहि दक्षिण दिशायां बन्धय बन्धय यमस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय यम शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्य कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ॐ हलीं ज्रम्भणं कुरु कुरु ऊँ हलां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा ।

ऊँ ऐं ह्लीं श्रीं चण्डिके एहि एहि नैऋत्य दिशायां बन्धय बन्धय नैऋत्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय नैऋत्य शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्य कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ॐ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ॐ ऐं ह्लीं श्रीं कराल नयने एहि एहि पश्चिम दिशायां बन्धय बन्धय वरुण मुखं स्तम्भय स्तम्भय वरूण शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्य कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ॐ हलीं वश्यं कुरू कुरू ॐ हलां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ॐ ऐं ह्लीं श्रीं कालिके एहि एहि वायव्य दिशायां बन्धय बन्धय वायु मुखं स्तम्भय स्तम्भय वायु शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्य कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ॐ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं महा त्रिपुर सुन्दरी एहि एहि उत्तर दिशायां बन्धय बन्धय कुवेर मुखं स्तम्भय स्तम्भय कुबेर शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्य कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ॐ ह्लीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ॐ ऐं ऐं महाभैरवि एहि एहि ईशान दिशायां बन्धय बन्धय ईशान मुखं स्तम्भय स्तम्भय ईशान शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ॐ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ॐ ऐं ऐं गाङगेश्वरि एहि एहि ऊर्ध्व दिशायां बन्धय बन्धय ब्रह्मणं चतुर्मखं स्तम्भय स्तम्भय ब्रह्म शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ॐ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा ।

ॐ ऐं ऐं ललितादेवी एहि एहि अन्तरिक्ष दिशायां बन्धय बन्धय विष्णु मुखं स्तम्भय स्तम्भय विष्णु शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ॐ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ॐ ऐं ऐं चक्रधारिणि एहि एहि अधो दिशायां बन्धय बन्धय वासुकि मुखं स्तम्भय स्तम्भय वासुकि शास्त्रं निवारय निवारय सर्व सैन्यं कीलय कीलय पच पच मथ मथ मर्दय मर्दय ॐ हलीं वश्यं कुरू कुरु ऊँ हलां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

दुष्ट मन्त्रम् दुष्ट यन्त्रं दुष्ट पुरुषम् बन्धयामि शिखां बन्ध ललाटं बन्ध भवाँ बन्ध नेत्रो बन्ध कर्णौ बन्ध नासौ बन्ध ओष्ठी बन्ध अधरों बन्ध जिह्वां बन्ध रसनां बन्ध बुद्धि बन्ध हृदयं बन्ध कुक्षि बन्ध हस्तौ बन्ध नाभि बन्ध लिङगम् बन्ध गुहां बन्ध ऊरू बन्ध जानू बन्ध जङघो बन्ध गुल्फौ बन्ध पादौ बन्ध स्वर्ग-मृत्युं पातालं बन्ध बन्ध रक्ष रक्ष ॐ हर्लीीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हर्लीीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ऊँ ऐं ऐं ॐ हलीं बगलामुखि इन्द्राय सुराधि पतये ऐरावत् वाहनाय श्वेत वर्णाय वज्रहस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् निरासय निरासय विभज्जय विभज्जय ॐ हलीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ हलीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ॐ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ऊँ ऐं ऐं ऊँ हलीं बगलामुखि अग्नेय तेजोधिपतये छाग वाहनाय रक्त वर्णाय शक्ति हस्ता सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ॐ हलीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ॐ हलीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ॐ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ॐ ऐं ऐं ॐ हलीं बगलामुखि यमाय प्रेताधिपतये महिष वाहनाय कृष्ण वर्णाय दण्ड हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ॐ हलीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ॐ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ॐ ऐं ऐं ॐ ह्लीं बगलामुखि वरुणाय जलाधि पतये मकर वाहनाय श्वेत वर्णाय पाशहस्ता सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ऊँ हलीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ॐ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ऊँ ऐं ऐं ऊँ हलीं बगलामुखि वायव्याय मृगवाहनाय धूम वर्णाय ध्वजा हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ॐ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ॐ ह्लीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ॐ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ॐ ऐं ऐं ऊँ हलीं बगलामुखि ईशानाय भूताधि पतये वृषभ वाहनाय कर्पूर वर्णाय त्रिशूल हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ॐ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ हलीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ॐ ऐं ऐं ॐ ह्लीं बगलामुखि ब्रह्मणे ऊर्ध्व- दिग्लोक-पालाधि पतये हंस वाहनाय श्वेत वर्णाय कमण्डलुहस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ॐ ह्लीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ हलीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ॐ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ॐ ऐं ऐं ॐ ह्लीं बगलामुखि वैष्णी सहिताय नागाधिपतये गरूण वाहनाय श्याम वर्णाय चक्र हस्ताय सपरिवाराय एहि एहि मम विघ्नान् विभज्जय विभज्जय ॐ हलीं अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय ऊँ हलीं अमुकस्य मुखम् भेदय भेदय ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा ।

ॐ नमो भगवते पुण्य पवित्रे स्वाहा ।

ऊँ हलीं बगलामुखि नित्यम् एहि एहि रवि मण्डल मध्याद् अवतर अवतर सानिध्यं कुरू कुरू । ॐ ऐं परमेश्वरीम् आवाहयामि नम् । मम् सानिध्यं कुरु कुरु । ॐ हलीं बगलामुखि हुम् फट् स्वाहा ।

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं हलं हलीं हलू हलै हलौं हलः बगले चतुर्भुजे मुद्धरशर संयुक्ते दक्षिणे जिवा व्रज संयुक्ते वामे श्री महाविद्ये पीत बस्त्रे पच्च महाप्रेताधि रूढे सिद्ध विद्याधर बन्दिते ब्रह्म विष्णु रूद्र पूजिते आनन्द स्वरूपे विश्व सृष्टि स्वरूपे महा भैरव रूप धारिणि स्वर्ग मृत्यु पाताल स्तम्भिनी वाम मार्गाश्रिते श्री बगले ब्रह्म विष्णु रूद्र रूप निर्मिते षोडशकला परिपूरिते दानाव रूप सहस्त्रादित्य शेभिते त्रिवर्णे एहि एहि हृदयं प्रवेशय प्रवेशय शत्रुमुखं स्तम्भ स्तम्भ अन्य भूत पिशाचान् खादय खादय अरिसैन्यं विदारय विदारय पर विद्यां परचक्रं छेदय छेदय वीर चक्रं धनुषां संभारय संभारय त्रिशूलेन् छिन्धि छिन्धि पाशेन बन्धय बन्धय भूपतिं वश्यं कुरू कुरू संमाहेय- मोह बिना जाप्येन सिद्धय सिद्धय बिना मन्त्रेण सिद्धिं कुरु कुरु सकल दुष्टान् घातय- घातय मम त्रैलोक्यं वश्यं कुरु-कुरु सकल कुल राक्षसान् दह दह पच पच मथ मथ हन हन मर्दय मर्दय मारय मारय भक्ष्य भक्षय मां रक्ष रक्ष विस्फाटका दीन् नाश्य नाशय ऊँ ह्रीं विषम ज्वरं नाशय- नाशय विषं निर्विष कुरू कुरू ऊँ हलीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा ।

ॐ क्लीं क्लीं ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पंद स्तम्भय जिह्वां कीलय कीलय बुद्धि विनाशय विनाशय क्लीं क्लीं ह्लीं स्वाहा।

ऊँ बगलामुखि स्वाहा । ॐ पीताम्बरे स्वाहा । ॐ त्रिपुर भैरवि स्वाहा । ॐ विजयायै स्वाहा । ॐ जयायै स्वाहा। ऊँ शारदायै स्वाहा । ॐ सुरेश्रर्ये स्वाहा । ॐ रुद्राण्यै स्वाहा । ऊँ विन्ध्यवासिन्यै स्वाहा। ॐ त्रिपुर सुन्दर्यै स्वाहा । ॐ दुर्गाये स्वाहा । ॐ भवान्यै स्वाहा । ॐ भुवनेश्वर्यै स्वाहा । ॐ महा मायायै ऊँ स्वाहा । ॐ कमल लोचनायै स्वाहा । ॐ तारायै स्वाहा । ॐ योगिन्यै स्वाहा । ॐ कौमार्यै स्वाहा । ॐ शिवायै स्वाहा । ॐ इन्द्राण्यै स्वाहा । ॐ ह्लीं बगलामुखि हं फट् स्वाहा ।

ऊँ हलीं शिव तत्व व्यापिनी बगलामुखि हृदयाये स्वाहा । ॐ हलीं माया तत्व- व्यापिनी बगलामुखि हृदयाये स्वाहा । ॐ ह्लीं विद्या तत्व व्यापिनि बगलामुखि शिसे स्वाहा। ऊँ हलीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

ॐ हां हीं हलू हलै हलौं हलः शिरो रक्षतु बगलामुखि रक्ष रक्ष स्वाहा । 

ॐ हां हीं हलू हलै हलौं हलः भालं रक्षतु पीताम्बरे रक्ष रक्ष स्वाहा । 

ऊँ हलां हलीं हलू हलै हलौ हलः नेत्रे रक्षतु महा भैरवि रक्ष रक्ष स्वाहा । 

ऊँ हलां हलीं हलू हलै हलौ हलः कर्णो रक्षतु विजये रक्ष रक्ष स्वाहा । 

ॐ हां हीं हलू हलै हलौं हलः नासौ रक्षतु जये रक्ष रक्ष स्वाहा। 

ॐ हां हीं हलू हलै हलौं हलः वदनं रक्षतु शारदे रक्ष रक्ष स्वाहा ।

ऊँ हलां हलीं हलू हलै हलौं हलः स्कनधौ रक्षतु विन्ध्यवासिनी रक्ष रक्ष स्वाहा। 

ऊँ हलां हलीं हलू हलै हलौं हलः बाहु रक्षतु त्रिपुर सुन्दरि रक्ष रक्ष स्वाहा । 

ॐ हां हीं हलू हलै हलौ हलः करौ रक्षतु दुर्गे रक्ष रक्ष स्वाहा ।

ऊँ हलां हलीं हलू हलै हलौ हलः हृदयं रक्षतु भवानी रक्ष रक्ष स्वाहा । 

ॐ हां हीं हलू हलै हलौं हलः उदरं रक्षतु भुवनेश्वरि रक्ष रक्ष स्वाहा । 

ॐ हां हीं हलू हलै हलौ हलः नाभिं रक्षतु महामाये रक्ष रक्ष स्वाहा। 

ऊँ हलां ह्लीं हलू हलै ह्लौं हलः कटिं रक्षतु कमल लोचने रक्ष रक्ष स्वाहा। 

ऊँ हलां हलीं हलू हलै हलौं हलः उरौ रक्षतु तारे रक्ष रक्ष स्वाहा । 

ऊँ हलां हलीं हलू हलै हलौ हलः सर्वाङगे रक्षतु महातारे रक्ष रक्ष स्वाहा। 

ऊँ हलां हलीं हलू हलै हलौ हलः अग्रे रक्षतु योगिनि रक्ष रक्ष स्वाहा । 

ॐ हां हीं हलू हलै हलौं हलः पृष्ठे रक्षतु कौमारि रक्ष रक्ष स्वाहा । 

ऊँ हलं हलीं हलू हलै हलौं हलः दक्षिण पार्श्वे रक्षतु शिवे रक्ष रक्ष स्वाहा। 

ऊँ हलां हलीं हलू हलै लौं हलः वाम पार्श्वे रक्षतु इन्द्राणि रक्ष रक्ष स्वाहा ।

ऊँ गां गीं गूं गैं गौं गः गणपतये सर्व जन मुख स्तम्भनाय आगच्डछ आगच्छ मम विधनान् नाशय नाशय दुष्टं खादय खादय दुष्टस्य मुखं स्तम्भय स्तम्भय अकाल मृत्युं हन हन भो गणाधिपते ऊँ हलीं वश्यं कुरू कुरू ऊँ हलीं बगलामुखि हुं फट् स्वाहा।

हवन – जहाँ-जहाँ स्वाहा है आहुतियां देते रहें।

एक हजार पाठ के उपरान्त यह पाठ स्वतः चलने लगता है, भगवती के यंत्र की पंचोपचार पूजन कर, रीढ़ की हड्डी सीधी कर बैठे व अपनी त्रिकुटि के मध्य में ध्यान रखते हुए पाठ करें कैसा भी आप पर तांत्रिक प्रयोग किया गया हो उसको यह ध्वस्त कर देता है व अभिचारिक व्यक्ति को दंड भी मिल जाता है। इस पाठ को आप अपनी दैनिक पूजा में यदि स्थान देते हैं तो भगवती आप की पूरी सुरक्षा ही नहीं करती वरन् बहुत कुछ दे देती है, जिसे स्वयं आप अनुभव करेंगे, धैर्यता पूर्वक क्रमशः आगे बढ़ते रहें, भगवती आप की प्रत्येक मनोकामनाओं को पूर्ण करेगी। एक वर्ष में ही आप शक्ति सम्पन्न हो जाएगें। ऐसा अनुभवी साधकों ने स्वीकारा है।

(श्री बगलामुखि कल्पै वीर-तन्त्रे बगला- सिद्ध प्रयोग )

|| जय माँ बगलामुखी ||

टी.डी. सिंह जी

नवीनतम अनुभव

बगलामुखी मूल मंत्र – साधना, अनुशासन और अनुभव

ॐ ह्ल्रीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्ल्रीं ॐ स्वाहा । “क्रम दीक्षा के अनुसार एकाक्षरी, चतुरक्षर, अष्टाक्षर मंत्र जप के बाद पश्चात् ही मूल मंत्र का जप करें, सीधे मूल मंत्र का जप न करें, क्यों कि बालू पर उठाई गई दीवार अधिक दिन टिक नहीं पाएगी, अतः नींव मजबूत करनी ही पड़ेगी।” साधना अनुशासन इनकी साधना में अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि ये दुधारी तलवार है, अतः थोड़ी भी चूक का परिणाम भुगतना ही पड़ता है। एक दृष्टांत: हम और एक पंडित जी ने बगला जप प्रारम्भ किया। तीसरे दिन मेरे दवाखाने में एक अत्यन्त सुन्दर स्त्री आई, उसके बाएं स्तन में गिल्टी थी। पहले तो मैं टाल रहा था, परन्तु उसके बार-बार आग्रह

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प्राण प्रतिष्ठा- गूलर की लकड़ी पर

विनियोग – ॐ अस्य श्री प्राण प्रतिष्ठा मन्त्रस्य ब्रह्मा विष्णु रुद्रा ऋषयः ऋग्य जुसामानिच्छन्दासि, पराssख्या प्राण शक्ति देवता आं बीजं, ही शक्तिः, क्रों कीलकम् मम शत्रु ( …….) प्राण प्रतिष्ठापने विनियोगः । (जल भूमि पर डाल दे ) ऋष्यादि न्यास- ॐ अंगुष्ठायो ।  ॐ आं ह्रीं क्रौं अं कं खं गं घं ड़ं आं ॐ हीं वाय वग्नि सलिल पृथ्वी स्वरूपाददत्मने डंग प्रत्यंगयौः तर्जन्येश्च । ॐ आं ह्रीं क्रौं इं छं जं झं ञं ई परमात्य पर सुगन्धा ssत्मने शिरसे स्वाहा मध्यमयोश्च । ॐ आं ह्रीं क्रौं डं टं ठं डं ढं णं ॐ श्रोत्र त्व क्चक्षु-जिव्हा धाणाssत्यने शिखायै वषट् अनामिकयोश्च । ॐ आं ह्रीं क्रों एं थंदं धं नं प्राणात्मने-कवचाय हुं कनिष्ठिकयोश्च। ॐ आं ह्रीं क्रों पं फं बं

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माँ के मंदिर हेतु पुण्य दान करें

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🙏 धन्यवाद 🙏

आपका यह दान धर्म, भक्ति और सेवा के पवित्र कार्य में सहायक सिद्ध होगा। माँ बगलामुखी आपकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करें और आपको शक्ति, सफलता व सुरक्षा प्रदान करें।

🔱  जय माँ बगलामुखी  🔱