मेरा यजमान एक सरकारी ड्राइवर है जिस पर कृत्या का इतना तीव्र प्रयोग किया गया कि वह घर में रह ही नहीं पाते थे, रात में भी घर न जाकर आफिस में ही सोते थे। चार-चार माह बीत जाते परन्तु वह घर जाने का नाम ही नहीं लेते यही नहीं तन्त्र द्वारा उन्हें पूर्णतः नपुंशक बना दिया गया, उनका सेक्स पूर्णतः नष्ट हो चुका था। सेक्स ठीक करवाने हेतु अनेको डाक्टरों की दवाइयों का सेवन किया, परन्तु कोई लाभ न हुआ, कई तांत्रिकों के चक्कर लगाए, एक तांत्रिक पर भैरव का आवेश आता था, रात-रात उसके वहाँ रहे बड़े-बड़े वादे उस तांत्रिक ने किए पर समस्या जस की तस बनी रही। उनके तीन बेटियाँ विवाह के योग्य हो रही थीं, कैसे उनका विवाह करना है, कुछ भी विचार नहीं करते। कुल मिलाकर स्थिति अत्यन्त शोचनीय थी। अर्द्धविक्षिप्त अवस्था की ओर क्रमशः उनका जीवन जा रहा था, इसे हमें रोकना था और वह भी बिन पैसों के एक तीव्र तांत्रिक से सीधी टक्कर लेनी थी। वह कहता था नौकरी पक्की नहीं होने दूंगा, हाथ में कटोरा पकड़वा दूंगा। इस तीव्र तांत्रिक के क्रिया कलाप को नष्ट करना कोई मजाक नहीं था। तीव्र पर तीव्रतर प्रयोग ही सफलता दे सकता अतः विचार किया क्यों न बगला सूक्त के ग्यारह हजार पाठों का संकल्प लिया जाए और ऐसा ही किया गया। पाठ पूर्ण होने के बाद सब सामान्य हो गया। अब वह श्रीमान जी घर में रहने लगे, उनकी पत्नी भी उनके पैर दबाने लगी, जमीन का अच्छा मुवावजा भी मिल गया, अब वह करोड़पति बन गये, कुछ समयोपरान्त दो बेटियों का विवाह भी सम्पन्न हो गया। प्रत्येक बेटी के विवाह में चार पहिया गाड़ी देकर धूमधाम से कार्यक्रम सम्पन्न किया। कुछ कृषि योग्य जमीन भी खरीद ली परन्तु हमें एक बात का दुःख अवश्य हुआ कि गिरे वक्त पर मैंने निःशुल्क साथ दिया, भगवती से प्रार्थना कर उनके जीवन को खुशहाली के मार्ग पर लाने का प्रयत्न किया, जिसमें मैं सफल भी हुआ, अब प्रश्न है कि पारिश्रमिक के तौर पर हमें क्या मिला? | जिस प्रकार क्रिया की गई आप के सम्मुख प्रस्तुत है-
बगला सूक्त-कृत्या परिहणम् “अथर्वेद से”
संकल्प – ॐ तत्सद्य ……..प्रसाद सिद्धी द्वारा मम यजमानस्य (नाम दें) सर्वाभीष्ठ सिद्धिर्थे पर प्रयोग, पर मंत्र-तंत्र-यंत्र विनाशार्थे, सर्व दुष्ट ग्रहे बाधा निवाणार्थे, सर्व उपद्रव शमनार्थे श्री भगवती पीताम्बरायाः बगला सूक्तस्ये ग्यारह सहस्त्र पाठे अहम् कुर्वे (जल पृथ्वी पर डाले दें)
सर्व प्रथम भगवती को मछली अर्पित कर पाठ करें व ग्यारह हजार पाठ के उपरान्त हवन
कर भवगती को पुनः मछली भेंट करें।
मछली भेंट करना: आटा गूँथे जिसमें काला तिल अधिक हो, इसकी मछली बनाकर, आंखों के स्थान पर एक-एक लौंग लगा कर इसकी प्राण प्रतिष्ठा करते हैं, फिर कड़े पर सरसों के तेल से जयोति उठा कर यह मछली भगवति को अर्पित कर बगला सूक्त का पाठ आरम्भ करें।
मछली की प्राण प्रतिष्ठा:- विनियोग ॐ अस्य प्राण प्रतिष्ठा मन्त्रस्य ब्रह्मा, विष्णु, रुद्रा ऋषयः ऋग्य जुसामनिच्छन्दासि, पराssख्या प्राण शक्ति देवता आं बीजं, ह्रीं शक्तिः, क्रां े कीलकम् मछली प्राण प्रतिष्ठापने विनियोगः (जल भूमि पर डाल दें)
ऋष्यादि न्यास-
ऊँ अंगुष्ठयोः।
ऊँ आं ह्रीं क्रौं अं कं खं गं घं ङं आं ऊँ ह्रीं व य वङ्ग्नं सल्ल पथ्वी स्वरूपाssत्मनेडंग प्रत्यंगयौ तर्जन्येश्च ।
ऊँ आं ह्रीं क्रौं इं चं छं जं झं ञं ई परमात्यपर सुगन्धाssत्पने शिरसे स्वाहा मध्यमयोश्च।
ऊँ आं ह्रीं क्रौं डं टं ठं ठं डं दं णं ऊँ क्षेत्र विशेषं कञ्चु-निझ्व घ्राणाऽऽत्मने सशिखायै वषट् अनामिकयोश्च।
ऊँ आं ह्रीं क्रौं एं णं थं दं घं नं प्राणात्मने कवचाय हुं कनिष्ठकयोश्च।
ऊँ आं ह्रीं क्रौं पं फं बं भं मं वचनं दान गमन विसर्ग नन्दाssत्मने औं नेत्र त्रयाय वौषट्।
ऊँ आं ह्रीं क्रौं अं यं रं लं वं शं षं सं हं लं क्षं आः मनो बुद्ध्य हंकार चित्राssत्मने अस्त्राय फट्।
मछली को स्पर्श करते हुए यह मंत्र पढ़े:- ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हों हंसः मछली प्राणा इह प्राणाः। ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हों हंसः मछली जीव इह स्थितः। ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हों हंसः मछली सर्वेन्द्रियाणि इह स्थितानि। ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं संहों हंसः मछली वाङ मनश्चक्षु श्रोत्र घ्राण-प्राणा इहागत्य संखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा।
बगला सूक्त
यां ते चक्रु: रामे पात्रे, यां चक्र्मिश्र धान्ये।
आमे मांसे कृत्यां, यां चक्रु: पुनः प्रति हरामि ताम्॥1॥
यां ते चक्रु: कृक वाकावजे वा, यां कुरीरिणीं।
अव्या ते कृत्यां, यां चक्रु:पुनः प्रति हरामि ताम्॥2॥
यां ते चक्रु: रेक शफे, पशूना मृभयादति।
गर्दभे कृत्यां, यां चक्रु: पुनः प्रति हरामि ताम्॥3॥
यां ते चक्रु: रम्मूलायां, वल्गं वा नराच्याम्।
क्षेत्रे ते कृत्यां, मां चक्रु: पुनः प्रति हरामि ताम्॥4॥
यां ते चक्रु: र्गार्हपत्ये, पूर्वाग्नावुत दुश्चित:।
शालायां कृत्यां, यां चक्रु: पुनः प्रति हरामि ताम्॥5॥
यां ते चक्रु: सभायां, यां चक्रु:रघिदेवने।
अक्षेषु कृत्यां, यां चक्रु: पुनः प्रति हरामि ताम्॥6॥
यां ते चक्रु: सेनायां, यां चक्रु:रिष्वायुघे।
दुंदुभौ कृत्यां, यां चक्रु: पुनः प्रति हरामि ताम्॥7॥
यां ते कृत्यां कूपेऽवदघु:, श्मशाने वा निचरन्तु:।
सद्यानि कृत्यां, यां चक्रु: पुनः प्रति हरामि ताम्॥8॥
यां ते चक्रु: पुरूषास्थे, अग्नौ एकं सुके च याम्।
म्रोक्मं निर्दाह क्रव्यादं, पुनः प्रति हरामि ताम्॥9॥
अपथेनणां, तां पथेतः प्रदहन्मस।
अघीरो मया घीरेभ्यः, सं विहारार्थित्या॥10॥
यश्चकार न शशाक कर्तु, शश्रे पदामग्ड॰लिम्।
चकार भद्र मस्मभयम, भगौ भगवद्भ्यः॥11॥
कृत्यां कृतं वलगिनं, मूलिनं शपथेऽहम्।
इन्द्रस्तं हन्तु महता, वघेनाग्नि र्विघ्यतवस्तया॥12॥
यह एक पाठ हुआ।
अर्थ:-
अभिचार करने वाले ने अच्छे मिट्टी के पात्र में या धान, जौ गेंहू, उपवाक, तिल, कांगनी के मिश्रित घान्यों में अथवा कुक्कुटादि से कच्चे मांस में, हे कृत्ये! तुझे किया है। मैं तुझे उपचार करने वाले पर ही वापस भेजता हूँ !!!!
हे कृत्ये! तुझे मुर्गे, बकरे या पेड़ पर किया है, तो हम अभिचार करने वाले पर ही लौटाते हैं। !!2!!
हे कृत्ये! अभिचारकों ने तुझ एक खुर वाले अथवा दोनो दाँत वाले गधे पर किया है तो तुझे अभिचारक पर ही लौटाते हैं !!3!!
हे कृत्ये! यदि तुझे मनुष्यों से पूजित भक्ष्यं पदार्थ में ढक कर खेत में किया गया है तो तुझे अभिचारक पर ही लौटाते है !!4!!
हे कृत्ये! तुझे गार्हपत्याग्नि या यज्ञशाला में किया गया है, तो तुझे अभिचारक पर लौटा है !!5!!
हे कृत्ये! तुझे सभा में या जुएं के पाशों में किया गया है तो अभिचारक पर ही लौटाते हैं !!6!!
सेना के बाण अथवा दुन्दुभि पर जिस कृत्या को किया है, उसे मैं अभिचारक पर ही लौटाता !!7!!
जिस कृत्या को कुएं में डालकर, श्मशान में गाड़ कर अथवा घर में किया है, उसे मैं वापस करता हूँ !!8!!
पुरुष की हड्डी पर या टिमटिमाती हुई अग्नि पर जिस कृत्या को किया है, उसे मांसभक्ष अभिचारक पर ही पुनः प्रेसित करता हूँ !!9!!
जिस अज्ञानी ने कृत्या को कुमार्ग से हम मर्यादित लोगों पर भेजा है, हम उसे उसी मार्ग से उसकी (भेजने वाले की ) ओर प्रेरित करते हैं !! 10!!
जो कृत्या द्वारा हमारी उंगली या पैर को नष्ट करना चाहता है, वह अपने इच्छित प्रयास में सफल न हो और हम भाग्यशालियों का वह अमंगल न कर सके !! 11 !!
भेद रखने वाले तथा छिपकर (गुप्तरूप से) कृत्या कर्म करने वाले को, इन्द्र अपने विशाल शस्त्र से नष्ट कर दें, अग्नि उसे अपनी ज्वालाओं से जला डाले !!12 !!
हवन:– प्रत्येक श्लोक के बाद स्वाहा लगा कर 108 या 11 पाठ की आहुति देते हैं।
हवन सामग्री:- पिसी हल्दी, पीली सरसों, सुनहरी हरताल, मालकांगनी, सफेद तिल, देशी घी में सानते हैं।
कृत्या निवारण – 11 हजार पाठों का विधान है।
|| जय माँ बगलामुखी ||